भारतीय अर्थव्यवस्था प्राचीनकाल से ही कृषि प्रधान रही है .प्राचीनकाल में भारत में कृषि प्रणाली बहुत विस्तृत रूप में थी .उस समय ग्रामवासी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अत्यधिक स्वालंबी एवं आत्मनिर्भर थे .आज भी भारत की ६० प्रतिशत जनता आजीविका के लिए कृषि पर ही निर्भर है ,किन्तु भारत के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि एवं उससे सम्बद्ध क्षेत्र का योगदान सापेक्षिक रूप से घटता जा रहा है
.यह सामान्य स्वीकृत मान्यता है कि जैसे जैसे कोई देश आर्थिक विकास करता है ,उसके सकल घरेलू उत्पाद में सेवा क्षेत्र तथा दितीयक क्षेत्र का सापेक्षित योगदान बढ़ता है परन्तु कृषि एवं सम्बद्ध क्षेत्र का योगदान घटता है .इसका मूलभूत कारण यह है कि कृषि एवं सम्बद्ध क्षेत्र के उत्पादक का मूल्य सेवा क्षेत्र या औधोगिक क्षेत्र या औधोगिक क्षेत्र के उत्पादों की तुलना में कम होता है .
अनाजों के सड़ने व महंगें हो रहे खाद पदार्थों और भुखमरी के बढ़ रहे दायरे को देखते हुए इस वर्ष कृषि क्षेत्र में नयी योजनाओं व कार्यक्रमों की उम्मीद की जा रही थी ,हालांकि सरकार ने कृषि में उपजे समस्याओं की नब्ज तो पकड़ ली लेकिन उसकी समस्या के समाधान का कोई प्रयास नहीं किया .वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी द्वारा इस सन्दर्भ में जो राशी आवंटित की गयी है वो ऊंट के मुंह में जीरा के बराबर है .
आर्थिक समीक्षा के अनुसार २०१० – ११ में कृषि का सकल घरेलू उत्पाद में योगदान घटकर १४.२ प्रतिशत रहने का अनुमान है ,जिसमें कृषि का भाग १२.३ प्रतिशत ,वानिकी का १.५ प्रतिशत और मतस्य का ०.८ प्रतिशत है .२००४-०५ में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी ) में कृषि का योगदान १.९ प्रतिशत था जिसे देखने से यह ज्ञात हो जाता है कि जीडीपी में कृषि का हिस्सा तेजी से घट रहा है . इसका कारण कुल विकास दर की तुलना में कृषि का पिछड़ना है .
२०११-१२ के बजट और पूर्ववर्ती बजटों में कृषि क्षेत्र के कार्यक्रमों और नीतियों कि समीक्षा करने से स्पष्ट हो जाता है कि इनका स्वरुप त्वरित परिणाम वाला ही रहा है . जिस प्रकार के सुधारात्मक कदम अर्थव्यवस्था के उदारीकरण – वैश्वीकरण हेतु उठाए गए ,उनका कृषि क्षेत्र में सर्वथा अभाव रहा है .दरअसल ,कृषि उपजों की कीमतों में हम जिस तेजी से जूझ रहे हैं ,वह भी कृषि के पिछड़ेपन के कारण पैदा हुई है .कृषि क्षेत्र में ढांचागत हालात खराब होने के कारण उपभोक्ताओं तक खाद वस्तुएं नहीं पहुंच पा रही हैं और इसलिए कीमत को काबू करने के उपाय कारगर नहीं रहे हैं .
अतः वास्तव में कृषि में हो रहीं समस्याओं को समाप्त करने के लिए आपूर्ति प्रबंधन को दुरुस्त करने और वितरण व्यवस्था की खामियों को खत्म करने के लिए समुचित कदम उठाए जाने की जरूरत है .
No comments:
Post a Comment