जिस पुण्य भूमि पर भगवान विष्णु को कर्तव्य का अहसास कराने वाले महर्षि भृगु पैदा हुए, बलिया के उसी धरती पर 1857 में हुए प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी व भारत मां के वीर सपूत मंगल पांडे का 19 जुलाई 1827 को तत्कालीन गाजीपुर जनपद के बलिया तहसील के अंतर्गत नगवां गांव के टोला बंधुचक में जन्म हुआ। इनके पिता का नाम सुदिष्ट पांडे व माता का जानकी देवी था।
1857 के स्वतंत्रता संग्राम में उनका उल्लेखनीय योगदान रहा। वे तत्कालीन ईस्ट इंडिया कंपनी के 19वीं नेटिव इंफेंटरी रेजीमेंट के सिपाही थे। पश्चिम बंगाल के बैरकपुर में विद्रोह शुरू करने का श्रेय मंगल पाण्डेय को ही है। अंगेजों द्वारा कारतूसों में जानवरों की चर्बी का प्रयोग करने वाली बात ने मंगल पांडे की आत्मा को झकझोर कर रख दिया। इस राइफल के कारतूस के बारे में कहा गया था कि इसमें गाय व सुअर की चर्बी लगी है और अंग्रेज ऐसा हिन्दू-मुसलमानों का धर्म नष्ट करने के मकसद से कर रहे हैं।
29 मार्च 1857 को मंगल पांडे ने परेड ग्राउंड में ही अपने साथियों को इसके विरोध के लिए विद्रोह करने हेतु ललकारा। अंग्रेज सार्जेंट मेजर ह्यूसन ने जब सैनिकों को मंगल को गिरफ्तार करने का हुक्म दिया, तो कोई सैनिक आगे नहीं बढ़ा। मंगल ने ह्यूसन को गोली मारकर वहीं ढेर कर दिया। इसके बाद सामने आए लेफ्टिनेंट बॉब को भी मंगल ने गोली से उड़ा दिया। इस दौरान जब मंगल अपनी बंदूक में कारतूस भर रहे थे, तो एक अंग्रेज अफसर ने उन पर गोली चलाई। निशाना चूकने पर मंगल ने उसे भी तलवार से मौत के घाट उतार दिया, लेकिन वह पकड़ लिए गए। उनकी गिरफ्तारी की खबर देशभर की सैनिक छावनियों में जंगल में आग की तरह फैल गई और विप्लवी भारतीय सैनिकों ने बगावत का झंडा बुलंद कर दिया।
मंगल पांडे द्वारा लगाई गई चिनगारी को ज्वालामुखी बनते देख अंग्रेजों को लगा कि यदि फांसी में देरी की गई तो बगावत उनके शासन को तबाह कर सकती है। इसलिए तय वक्त से 10 दिन पूर्व ही 8 अप्रैल 1857 को ही इस वीर पुरुष को फांसी दे दी गई। स्वतंत्रता के लिए लड़े गए इस युद्ध को शुरू में 1857 का गदर नाम मिला लेकिन बाद में इसे पहली जंग ए आजादी के रूप में मान्यता प्राप्त हो गई। मंगल पांडे के प्रयास का नतीजा 90 साल बाद 1947 में भारत की आजादी के रूप में निकला और अंग्रेज अपना सब कुछ समेटकर भारत से चले गए।
Really nice information about the legend Find
ReplyDelete