Monday, October 17, 2011

चौथे स्तम्भ का परशुद्धिकरण


           
‘‘न खींचों तीर-कमानों को न तलवार निकालोजब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो’’ उक्त पंक्तियां अकबर इलाहाबादी द्वारा उस समय लिखी गई थी जब देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। माना जाता है कि जो ताकत शब्दों में होती हैवह न तो बन्दूक की गोली में और न ही तलवार की धार में होती है। अस्त्र और शस्त्र से तो मात्र मनुष्य का शरीर ही घायल होता है किन्तु शब्दों के बाण ऐसे होते हैंजिनसे मनुष्य की आत्मा घायल होती है जिसे जीवन पर्यन्त भुला पाना आसान नहीं होता। वास्तव में ब्दों का सच्चा स्वामित्व एक पत्रकार ही होता हैजिसकी लेखनी का प्रत्येक ब्द किसी समाज व दे की दशा व दिशा बदलने में सहायक होता है।
भारतीय पत्रकारिता का इतिहास इस बात का परिचायक है कि स्वतंत्रता आंदोलन में पत्रकारिता का एक बहुत बड़ा योगदान रहा है। स्वतंत्रता पश्चात लाल बहादुर शास्त्रीडाॅ. राजेन्द्र प्रसादसरदार बल्लभ भाई पटेल जैसे उदीयमान राजनीतिज्ञों ने लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ प्रेस को विकास की दिशा में न केवल सहायक माना बल्कि इनके माध्यम से सीख लेकर समय-समय पर अपनी कमियों को दूर कर अपनी राजनीति का परशुद्धिकरण भी करते रहें। पूर्व में राजनीतिज्ञ भी निंदक नियरे रखिये’ की तर्ज पर कार्य करबिना पूर्वाग्रह के अपनी कमियों को सहर्ष स्वीकार कर दे के विकास के अनुकूल योजनाओं का भी निर्माण करते थेकिन्तु वर्तमान परिवे में इन सबका अर्थ परिवर्तन ही हो गया है।
आज  दे का चौथा स्तम्भ अपनी निष्पक्ष भूमिका से बहुत दूर होता चला जा रहा है। इसके पीछे जो मूलभूत कारण प्रतीत होता नजर आ रहा हैवह मीडिया के क्षेत्र में आ रहे नवागन्तुकों का बहुत तेजी के साथ शीर्ष पर पहुंचने की ललक दिखाई पड़ती हैजिसके लिए वह अपनी सीमा रेखा का उल्लंघन करने मात्र से भी नहीं कतराते हैं। कहा भी गया है कि ‘‘आवश्यकता अविष्कार की जननी होती है’’। चौथे स्तम्भ ने तीव्रता के साथ प्रगति तो की लेकिन स्वयं को पीत पत्रकारिता से बचा पाने में असफल रहा। गांधी जी ने कहा था कि ‘‘ पत्रकारों को स्वयं प्रेस का मालिक होना चाहिए, ताकि सत्य हर हालहर कीमत पर समाज एवं जनता के सामने आए’’  लेकिन आज मीडिया जगत में भेड़ों का रेला जैसे लग गया है। हर बड़ा व्यावसायी या सत्ताधारी स्वयं की कमियों को छुपाने के लिए इस स्तम्भ का हिस्सा बना बैठा है। जब ऐसे लोग इस स्तम्भ का हिस्सा बन जनता व समाज को जागरूक करने का कार्य करेंगे तो उनके द्वारा चलायी जाने वाली जागरूकता अभियान कैसी होगी?  यह हर बुद्धिजीवी के संज्ञान में है। इस दे का दुर्भाग्य कहें कि यहां गाड़ी चलाने के लिए ड्राइविंग लाइसेंस की आवश्यकता तो हैजिसका प्रमाण-पत्र परीक्षण के पश्चात दिया जाता है किन्तु प्रेस चलाने के लिए कोई परीक्षण की आवश्यकता नहीं है। यही कारण है कि बाजारवाद ने मीडिया को भी बुरी तरह से प्रभावित किया हैजिसके चलते पत्रकार आज अपने मालिक की चाटुकारिता में ही तल्लीन रह अपने को देश का चौथा स्तम्भ बताने में गौरवान्वित महसूस करता है और जो इससे परे अपनी योग्यता का प्रदर्शन करते हुए देश व समाज के लिए कुछ करने का प्रयास करते हैं वह अपना पूरा जीवन संघर्षों में ही बीता देते हैं। इसी कारणवश यह कहा जाने लगा है कि आज मीडिया मिशन न होकर प्रोफेशन हो गयी है।
अभी कुछ दिनों पूर्व सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने दर्शकों के विरोध पर कुछ चैनलों को अश्लीलता व फूहड़पन परोसने के लिए नोटिस भेजा है और साथ ही कुछ चैनलों को यह निर्देश दिया है कि वह इस प्रकार के कोई भी कार्यक्रम जिनसे हिंसामहिलाओं के प्रति भेदभावया अश्लीलता को बढ़ावा मिले, के कंटेंट में परिवर्तन करें। हालाकि इस निर्देश के कुछ और भी कारण हो सकते हैं लेकिन इस बात का निर्धारण करना कि इस प्रकार के कोई भी कार्यक्रम का प्रसारण न हो चैनलों का ही दायित्व होता है।
आज देश के चौथे स्तम्भ को स्वयं की परशुद्धिकरण करने की आवश्यकता जान पड़ती है। अगर इस क्षेत्र में आने वाला कोई भी व्यक्ति अपनी दुर्दशा का रोना रोते हुए वह करने पर विवश है जो समाज के लिए अहितकर है तो ऐसे में उस व्यक्ति को यह क्षेत्र ही छोड़ देना उचित है क्योकि चौथे स्तम्भ की भूमिका सर्वथा निष्पक्ष होनी चाहिए।