Friday, December 9, 2011

वोट या चोट …


स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से भारतीय राजनीति ने देश के उज्जवल भविष्य के निहितार्थ अनेकों प्रयास किये हैं और सत्ताधारियों के इस प्रयास में देश का चौथा स्तम्भ भी कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा रहा है. ६४ वर्षों में देश बहुत तेजी के साथ विकास की ओर अग्रसरित हुआ. जिस प्रकार किसी घर को चलाने में एक गृहणी का बहुत बड़ा योगदान होता है उसी प्रकार देश को चलाने के लिए गृह मंत्रालय का भी अपना अलग योगदान है. गृह मंत्री के रूप में चिदंबरम के तीन वर्ष में छह महीने यूपीए-एक के हैंउन्हें मुंबई के आतंकी हमले के बाद १ दिसंबर २००८ को गृहमंत्री बनाया गया था. ताजातरीन जानकारी के आधार पर इनके अब तक के कार्यकाल की कुल ७५ उपलब्धियां हैजिनका गुणगान प्रशासनिक अधिकारियों के माध्यम से जनता जनार्दन को बताया गया है. इसके लिए गृह सचिव  आरके सिंह को गृहमंत्रालय की ओर से प्रवक्ता के रूप में मीडिया के सामने लाया गया. श्री सिंह ने चिदंबरम के कार्यकाल की ७५  उपलब्धियां गिनाईंवहीं मात्र पांच विफलताओं का जिक्र किया. उपलब्धियों की सूची लंबी करने के लिए इसमें मंत्रालय की दैनिक क्रियाकलापों को भी शामिल कर लिया गया है. इनमें संसदीय सलाहकार समिति की १३  बैठकों, १७ वर्ष  पहले गठित लिब्राहन आयोग की रिपोर्ट को संसद में पेश करने और आंतरिक सुरक्षा पर मुख्यमंत्रियों के चार सम्मेलन आयोजित करने जैसे मामले शामिल हैं. यहां अगर लिब्राहन आयोग की चर्चा करें तो किसी भी कमीशन या संस्था में एक से अधिक सदस्य न हो तो उस कमीशन की रिपोर्ट पर विश्वास करना असंभव होता है.रिपोर्ट की पारदर्शी व न्याय संगत होने के लिए एक से अधिक लोगों का होना जरुरी है, जबकि इस आयोग में ऐसा नहीं रहा. यह आयोग कांग्रेस के सरकार में ही गठित हुए थी और इसकी अंतिम रिपोर्ट भी कांग्रेस के सरकार में ही आयी और फैसला भी सरकार के पक्ष में ही रहा. यहां एक मुहावरा याद आता है कि 'जिसकी लाठी उसकी भैस'
हमारे देश में किसी भी वाद-विवाद को राजनितिक लाभ के लिए भुनाना हो तो कमीशन बैठाना सबसे आसान काम है. हालांकि आज तक किसी भी कमीशन ने ऐसा कोई स्पष्ट निष्कर्ष नहीं दिया है जिससे किसी भी मुद्दे का वास्तविक हल निकल सके या उस मुद्दे को शांत कर सके. चाहे वह रामजन्म भूमि मामला हो या गोधरा कांड. यह शायद इसलिए भी आवश्यक हो जाता है क्योकि मुद्दों की आग में राजनीति का तावा गरम रहें और उस पर वोट बैंक की रोटी सिकती रहे, जिससे सत्ताधारियों द्वारा सत्ता पर काबिज रहा जा सके.  
उपलब्धियों में शामिल अन्य मामले अ‌र्द्धसैनिक बलों से संबंधित हैं. दंतेवाड़ा में  नक्सली हमले में ७५ सीआरपीएफ जवानों की मौत का उनकी विफलताओं में जिक्र तक नहीं हैजबकि इसी प्रकरण में चिदंबरम के इस्तीफे की पेशकश तक करनी पड़ी थीजिसे पीएम ने ठुकरा दिया था. 
वास्तविकता तो यह है कि चिदंबरम जी जिस सरकार में है , उस सरकार की कमान तो विदेशी हाथों में है . तो सत्ता में बने रहने के लिए उन्हें कठपुतली तो बनना ही पड़ेगा . वैसे सरकार में शामिल सभी कठपुतलियों को चलाने वाले हाथ की अगर बात करें तो 'स्वीटजर ' पत्रिका ने उस हाथ में कितनी गंदगी है, उसका भी खुलासा कर दिया है. अब रही बात देश की जनता की तो जनता जनार्दन तो अपना फैसला चुनाव के समय सुनाती है. तो देखना यह है कि कांग्रेस युवराज जिस जनता को भूखा और नंगा कहते है वो जनता उन्हें चुनाव में क्या देती है? वोट या चोट ...


Monday, November 14, 2011

मजीठिया बनी प्रेस मालिकों के गले में फंसी हड्डी



भारतीय संविधान के अन्तर्गत देश  में रहने वाले सभी व्यक्तियों को अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्राप्त है, जो कि संविधान के अनुच्छेद 19 (1) में लिखित रूप से विद्यमान है। इसी अनुच्छेद के अन्तर्गत देश  के चौथे स्तम्भ अर्थात प्रेस को भी अपने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है लेकिन आजादी के पूर्व से लेकर अब तक यह स्वतंत्रता  सत्ताधारियों के हाथ की कठपुतली मात्र बन कर रह गई है। आरम्भ से ही प्रेस की आजादी पर बंदि लगाने हेतु अनेकों प्रयास किए गए और समय-समय पर जनहित के लिए उठाए गए चौथे स्तम्भ की आवाज को दबाया गया।

हाल ही में हुए जनान्दोलनों में सरकार की भूमिका को लेकर भड़के जनाक्रो से घबराये सत्ताधारियों ने अपनी धूमिल हुई छवी को फिर से साफ करने हेतु एक प्रयास के क्रम में चौथे स्तम्भ के सिपाहियों के सामने सालों से पड़ी हुई मजीठिया वेज बोर्ड नामक मुद्दे को फिर से उछाला है। वर्तमान समय में यह मुद्दा सरकार और चौथे स्तम्भ के मध्य सेतु के रूप में है, जिसे प्रेस मालिक निरन्तर तोड़ने व प्रेस में कार्यरत कर्मचारी जोड़ने में लगा है।

हालांकि मजीठिया वेज बोर्ड ने दिसंबर 2010 में ही अपनी पहली रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी। इस रिपोर्ट के अनुसार अखबारी और एजेंसी कर्मियों (जिसमें पत्रकारों और गैर पत्रकारों) के लिए 65 प्रतित तक वेतन वृद्धि की सिफारि की गई है तथा साथ में मूल वेतन का 40 प्रतित तक आवास भत्ता और 20 प्रतित तक परिवहन भत्ता देने का सुझाव दिया गया है। न्यायमूर्ति जी.आर. मजीठिया के नेतृत्व वाले वेतन बोर्ड ने यह भी सिफारि की कि नए वेतनमान जनवरी 2008 से ही लागू किए जाएं। इसके अतिरिक्त बोर्ड ने पहले ही मूल वेतन का 30 प्रतित अंतरिम राहत राशि के रूप में देने का ऐलान कर दिया था। प्रेस उद्योग के इतिहास में किसी वेतन बोर्ड ने इस तरह की सिफारि पहली बार की है।

इस सिफारि के आने मात्र से मीडिया जगत में हलचल मच गई। बड़े मीडिया व्यावसायी पूरी तरह से इसके विपक्ष में खड़े होते दिखाई दिए। आईएनएस इस रिपोर्ट के विरोध में खुल कर अभियान तक चलाया, जिसकी अगुवाई टाइम्स ऑफ इंडियाजैसे कुछ बड़े स्तरीय समाचार पत्रों ने की। इस अभियान के माध्यम से यह संदे देने का प्रयास किया जा रहा था कि यदि इस वेज बोर्ड की सिफारि लागू हो गयी तो दे के अधिकां  समाचार पत्र बंद हो जाएंगे। इस अभियान के माध्यम से प्रेस जगत को भ्रमित करने के लिए आईएनएस ने कुछ इस प्रकार से तथ्य प्रस्तुत किए कि अगर यह सिफारि लागू हुई तो एक हजार करोड़ टर्न ओवर वाले समाचार पत्रों के चपरासी का वेतन भी 40 से 45 हजार रूपए तक हो जाएगा, जो कि सीमा के जवान और एक न्यायाधी के वेतन से भी अधिक है। अब प्रश्न यह उठता है कि जब टाइम्स ऑफ इंडियाने यह स्पष्ट किया है तो उसे यह भी बताना चाहिए कि दे में एक हजार करोड़ टर्न ओवर वाले कितने समाचार पत्र है और उनमें कितने ड्राईवर और चपरासी नियमित कर्मचारी हैं, जो इनके दावे के अनुसार बढ़ा वेतन पाने के हकदार होंगे।
इस सम्बन्ध  में इंडियन न्यूज पेपर्स सोसायटी (आई.एन.एस.) के अध्यक्ष आशीष बग्गा ने गंभीर आशंका  प्रकटाई है कि केन्द्रीय मंत्रिमंडल द्वारा दीवाली के मौके पर मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों  को स्वीकृति देने से पूरे देश  में लघु तथा मंझौले समाचारपत्रों का प्रकाशन बंद हो जाएगा क्योकि प्रस्तावित वेतन बढ़ौतरी बहुत ज्यादा है तथा उद्योग की क्षमता से परे है। उन्होंने चेतावनी दी कि इससे बड़े प्रकाशनों को भी वेतन बढ़ौतरी को लागू करने से दिक्कत हो सकती है। यह बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण है कि आई.एन.एस. के त्रुटिपूर्ण तथा एकतरफा रिपोर्ट को पुनः जांचने  के निवेदन पर सरकार ने विचार नहीं किया। 
आशीष बग्गा ने आगे कहा कि वर्किंग जर्नलिस्ट तथा अन्य समाचारपत्र कर्मचारी (सेवाओं की शर्तें) और विविध प्रोविजन एक्ट 1955 और मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों  को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं माननीय उच्चतम न्यायालय के विचाराधीन हैं तथा सरकार का निर्णय उच्चतम न्यायालय के आदेश  के अधीन होगा। सिफारिशों  के प्रकाशित  होने के बाद इन याचिकाओं में यदि जरूरी हुआ तो संशोधन होगा
  (पंजाब केसरी,दिल्ली,1 नवम्बर 2011) 
                                                                                                                                                                                                                                                                  
वर्तमान समय में समाचार पत्र मालिकों की सोच उस लालची व्यावसायी की तरह कुंठित होती जा रही है जो अपने व्यावसाय से आने वाली पूरी रकम को सिर्फ अपने बैलेंस शीट को बढ़ाने में प्रयोग करता है लेकिन अपने मूल आधार मानव संसाधन के वेतन और अन्य सुविधाओं पर खर्च को वह फालतू का खर्च मानने लगता है। वर्तमान समय में ऐसी स्थिति लगभग सभी प्रेस मालिकों की होती जा रही है।

अब ऐसे में एंटोनी का यह बयान कि सरकार जल्द ही इस सम्बंध में अपना फैसला सुनायेगी, मीडिया मालिकों की नींद हराम कर दिया है। जहां एक ओर इससे समाचार पत्रों में कार्य करने वाले कर्मचारी खु हुए है वहीं दूसरी ओर मालिक वर्ग में काफी गमगीन माहौल हो गया है।अब प्रश्न यह उठता है कि क्या सरकार इन मीडिया मालिकों को नाखुश कर इस सिफारिश को वास्तव में लागू करेगी या यह सब सिर्फ चुनावी प्रोपगंडे के तहत इन कर्मचारियों को सिर्फ खुश करने का कोई नयी चाल मात्र है  अब हर मीडिया कर्मचारी बस इस बात की बाट जोह रहा है कि केंद्र सरकार का आने वाला फैसला किसके पाले में होगा?...

Friday, November 4, 2011

मनरेगा पर एक नज़र



भारतवर्ष में 70 फीसदी जनसंख्या गांवों में रहती है। भारत में लगभग 6,27,000 गांव हैं और इनका मुख्य पेशा कृषि है। जब तक देश  के इन 70 फीसदी लोगों का विकास नहीं होगा तब तक देश विकास नहीं कर सकेगा। इसी बात को ध्यान में रख कर मनरेगा योजना का आरम्भ भारत सरकार ने किया था।  मनरेगा एक भारतीय रोजगार गारंटी योजना है, जिसे 25 अगस्त 2005 को विधान द्वारा अधिनियमित किया गया। यह योजना प्रत्येक वित्तीय वर्ष में किसी भी ग्रामीण परिवार के उन वयस्क सदस्यों को 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराती है जो प्रतिदिन 100 रुपये की सांविधिक न्यूनतम मजदूरी पर सार्वजनिक कार्य-सम्बंधित मजदूरी करने के लिए तैयार हैं। 2010-11 वित्तीय वर्ष में इस योजना के लिए केंद्र सरकार का परिव्यय 40,100 करोड़ रुपए है। इस अधिनियम को ग्रामीण लोगों की क्रय शक्ति को बढ़ाने के उद्देश्य से शुरू किया गया था। मुख्य रूप से ग्रामीण भारत में रहने वाले लोगों के लिए अर्ध-कौशलपूर्ण या बिना कौशलपूर्ण कार्य, चाहे वे गरीबी रेखा से नीचे हों या ना हों। नियत कार्य बल का करीब एक तिहाई महिलाओं से निर्मित है। सरकार एक कॉल सेंटर खोलने की योजना बना रही है, जिसके शुरू होने पर शुल्क मुक्त नंबर 1800-345-22-44 पर संपर्क किया जा सकता है। शुरू में इसे राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (नरेगा) कहा जाता था, लेकिन 2 अक्टूबर 2009 को इसका पुनः नामकरण किया गया।
                                       
 महात्मा गाँधी  राष्ट्रीय रोजगार गांरटी अधिनियम के अंतर्गत जिलें 

देश में कुल 28 राज्य व 7 केन्द्रशासित प्रदेश  हैं। जिसमें जिलों की संख्या नवीनतम अनुमान के अनुसार  638 है। इसका विवरण कुछ इस प्रकार से है - 
राज्य                                                                                                 जिला
आंध्रप्रदेश                                                                                            23
अरूणांचल प्रदेश                                                                                  16
असम                                                                                                  27
बिहार                                                                                                 38
छत्तीसगढ़                                                                                            18
गोवा                                                                                                   02
गुजरात                                                                                               26
हरियाणा                                                                                             21
हिमाचल प्रदेश                                                                                    12
जम्मू कश्मीर                                                                                     22
झारखंड                                                                                              24
कर्नाटक                                                                                              30
केरल                                                                                                  14
मध्यप्रदेश                                                                                           50
महाराष्ट्र                                                                                               35
मणिपुर                                                                                               09
मेघालय                                                                                              07
मिजोरम                                                                                             08
नागालैंड                                                                                              11
उड़ीसा                                                                                                 30
पंजाब                                                                                                 20
राजस्थान                                                                                           33
सिक्किम                                                                                            04
तमिलनाड़ु                                                                                           30
त्रिपुरा                                                                                                 04
उत्तरप्रदेश                                                                                            71
उत्तराखंड                                                                                             13
पश्चिम बंगाल                                                                                       19
इसी प्रकार से 7 केन्द्रशासित प्रदेश  में कुल 21 जिले हैं। जो इस प्रकार से हैं -
अंडबार निकोबार                                                                                 03
चंडीगढ़                                                                                               01
दादर नागर हवेली                                                                              01
दमन एवं दीव                                                                                    02
लक्षद्वीप                                                                                              01
दिल्ली                                                                                                09
पांडुचेरी                                                                                               04
इनमें से दिल्ली को छोड़कर कुल 28 राज्य व 6 केन्द्रशासित  प्रदेश  मनरेगा के अन्तर्गत आते हैं। इसके (मनरेगा) अन्तर्गत तीन चरणों में जिलों का विभाजन किया गया है। प्रथम चरण में कुल 187 जिले व द्वितीय चरण में 121 जिले हैं। इसी प्रकार से तृतीय चरण में 273 जिले हैं। इसके अन्तर्गत व्यक्ति को 100 दिन का रोजगार मुहैया कराया जाता है।

वित्तिय वर्ष 2011-12 में राज्यों के आधार पर मनरेगा के लिए आवंटित राशि :- 

राज्य                                                                     रूपये लाख में
उड़ीसा                                                                    30158.29042
राजस्थान                                                               161672.516164974
छत्तीसगढ़                                                               69523.89169
झारखंड                                                                  23919.2353708
मध्यप्रदेश                                                              70416.22371
त्रिपुरा                                                                    2003.68508000001
महाराष्ट्र                                                                  39711.29581999
गुजरात                                                                  48283.077348
पश्चिम बंगाल                                                         66219.9998449
केरला                                                                    15620.46063
कर्नाटका                                                                9269.29601
बिहार                                                                     52052.18468
मिजोरम                                                                9692.77267
हरियाणा                                                                2873.04356
हिमाचल प्रदेश                                                       8606.47954
उत्तर प्रदेश                                                             71638.9608489796
नागालैंड                                                                 0
असम                                                                    6348.0014906
उत्तराखंड                                                                9292.77309
मेघालय                                                                 8313.62223999999
पंजाब                                                                    5220.23689
तमिलनाडु                                                              43109.3097299999
सिक्किम                                                               3603.47197
मणिपुर                                                                  9748.25291
जम्मू एवं कश्मीर                                                  19364.3988035722
गोवा                                                                      294.6281693
अरूणाचल प्रदेश                                                     560.55273
लक्ष्यद्वीप                                                                41.9
अंडमान एवं निकोबार                                            139.62348
पांडुचेरी                                                                  515.05625
दमन एवं दीव                                                       0
दादर एवं नागर हवेली                                            0
आंध्रप्रदेश                                                               79608.1
चंडीगढ़                                                                  0
कुल योग                                                               867821.341141116
किसको मिलेगा कितना
यूपी में मनरेगा कामगारों को मौजूदा 100 रुपये के मुकाबले 120 रुपये, उत्तराखंड 100 के मुकाबले 120, चंडीगढ़ 140 के मुकाबले 174, हरियाणा 141.02 के मुकाबले 179, हिमाचल प्रदेश 100 के मुकाबले 120, जम्मू-कश्मीर 100 के मुकाबले 121 और पंजाब में 100-105 रुपये के मुकाबले 124-130 रुपये रोजाना मिला करेंगे।  

 (अमर उजाला,दिल्ली,07 जनवरी 2011, पृष्ठ संख्या 1)


अनुमानतः मनरेगा में 125 रू. प्रति व्यक्ति, प्रति दिन अगर मिलता है तो उसकी मासिक आय 3750 रू. व वार्षिक आय कुल 45 हजार रूपए होगी। अगर उस व्यक्ति के परिवार में उसे लेकर कुल पांच सदस्य है तो औसतन प्रति व्यक्ति 25 रू. प्रतिदिन के हिसाब से आता है और मासिक प्रति व्यक्ति आय 750 रू. होगा। अगर इस राशि  को बढ़ाकर 200 रू. कर दिए जाये तो 4 व्यक्तियों के परिवार में इस राशि  का आवंटन 40 रूपए के हिसाब से होगा और अगर इस तरह से व्यक्ति की वार्षिक आय को देखा जाए तो कुल 72,000 रू. होंगे और मासिक में कुल 6000 रूपए की राशि  होगी। इस आंकड़े के आधार पर अगर व्यक्ति को अपनी आजीविका का निर्धारण करना हो तो इस बढ़ती महंगाई में वह किस प्रकार से अपने परिवार का भरण - पोषण करने में समर्थ होगा इसका निर्धारण सत्ता पर काबिज सरकार ही कर सकती है।