Monday, November 14, 2011

मजीठिया बनी प्रेस मालिकों के गले में फंसी हड्डी



भारतीय संविधान के अन्तर्गत देश  में रहने वाले सभी व्यक्तियों को अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्राप्त है, जो कि संविधान के अनुच्छेद 19 (1) में लिखित रूप से विद्यमान है। इसी अनुच्छेद के अन्तर्गत देश  के चौथे स्तम्भ अर्थात प्रेस को भी अपने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है लेकिन आजादी के पूर्व से लेकर अब तक यह स्वतंत्रता  सत्ताधारियों के हाथ की कठपुतली मात्र बन कर रह गई है। आरम्भ से ही प्रेस की आजादी पर बंदि लगाने हेतु अनेकों प्रयास किए गए और समय-समय पर जनहित के लिए उठाए गए चौथे स्तम्भ की आवाज को दबाया गया।

हाल ही में हुए जनान्दोलनों में सरकार की भूमिका को लेकर भड़के जनाक्रो से घबराये सत्ताधारियों ने अपनी धूमिल हुई छवी को फिर से साफ करने हेतु एक प्रयास के क्रम में चौथे स्तम्भ के सिपाहियों के सामने सालों से पड़ी हुई मजीठिया वेज बोर्ड नामक मुद्दे को फिर से उछाला है। वर्तमान समय में यह मुद्दा सरकार और चौथे स्तम्भ के मध्य सेतु के रूप में है, जिसे प्रेस मालिक निरन्तर तोड़ने व प्रेस में कार्यरत कर्मचारी जोड़ने में लगा है।

हालांकि मजीठिया वेज बोर्ड ने दिसंबर 2010 में ही अपनी पहली रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी। इस रिपोर्ट के अनुसार अखबारी और एजेंसी कर्मियों (जिसमें पत्रकारों और गैर पत्रकारों) के लिए 65 प्रतित तक वेतन वृद्धि की सिफारि की गई है तथा साथ में मूल वेतन का 40 प्रतित तक आवास भत्ता और 20 प्रतित तक परिवहन भत्ता देने का सुझाव दिया गया है। न्यायमूर्ति जी.आर. मजीठिया के नेतृत्व वाले वेतन बोर्ड ने यह भी सिफारि की कि नए वेतनमान जनवरी 2008 से ही लागू किए जाएं। इसके अतिरिक्त बोर्ड ने पहले ही मूल वेतन का 30 प्रतित अंतरिम राहत राशि के रूप में देने का ऐलान कर दिया था। प्रेस उद्योग के इतिहास में किसी वेतन बोर्ड ने इस तरह की सिफारि पहली बार की है।

इस सिफारि के आने मात्र से मीडिया जगत में हलचल मच गई। बड़े मीडिया व्यावसायी पूरी तरह से इसके विपक्ष में खड़े होते दिखाई दिए। आईएनएस इस रिपोर्ट के विरोध में खुल कर अभियान तक चलाया, जिसकी अगुवाई टाइम्स ऑफ इंडियाजैसे कुछ बड़े स्तरीय समाचार पत्रों ने की। इस अभियान के माध्यम से यह संदे देने का प्रयास किया जा रहा था कि यदि इस वेज बोर्ड की सिफारि लागू हो गयी तो दे के अधिकां  समाचार पत्र बंद हो जाएंगे। इस अभियान के माध्यम से प्रेस जगत को भ्रमित करने के लिए आईएनएस ने कुछ इस प्रकार से तथ्य प्रस्तुत किए कि अगर यह सिफारि लागू हुई तो एक हजार करोड़ टर्न ओवर वाले समाचार पत्रों के चपरासी का वेतन भी 40 से 45 हजार रूपए तक हो जाएगा, जो कि सीमा के जवान और एक न्यायाधी के वेतन से भी अधिक है। अब प्रश्न यह उठता है कि जब टाइम्स ऑफ इंडियाने यह स्पष्ट किया है तो उसे यह भी बताना चाहिए कि दे में एक हजार करोड़ टर्न ओवर वाले कितने समाचार पत्र है और उनमें कितने ड्राईवर और चपरासी नियमित कर्मचारी हैं, जो इनके दावे के अनुसार बढ़ा वेतन पाने के हकदार होंगे।
इस सम्बन्ध  में इंडियन न्यूज पेपर्स सोसायटी (आई.एन.एस.) के अध्यक्ष आशीष बग्गा ने गंभीर आशंका  प्रकटाई है कि केन्द्रीय मंत्रिमंडल द्वारा दीवाली के मौके पर मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों  को स्वीकृति देने से पूरे देश  में लघु तथा मंझौले समाचारपत्रों का प्रकाशन बंद हो जाएगा क्योकि प्रस्तावित वेतन बढ़ौतरी बहुत ज्यादा है तथा उद्योग की क्षमता से परे है। उन्होंने चेतावनी दी कि इससे बड़े प्रकाशनों को भी वेतन बढ़ौतरी को लागू करने से दिक्कत हो सकती है। यह बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण है कि आई.एन.एस. के त्रुटिपूर्ण तथा एकतरफा रिपोर्ट को पुनः जांचने  के निवेदन पर सरकार ने विचार नहीं किया। 
आशीष बग्गा ने आगे कहा कि वर्किंग जर्नलिस्ट तथा अन्य समाचारपत्र कर्मचारी (सेवाओं की शर्तें) और विविध प्रोविजन एक्ट 1955 और मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों  को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं माननीय उच्चतम न्यायालय के विचाराधीन हैं तथा सरकार का निर्णय उच्चतम न्यायालय के आदेश  के अधीन होगा। सिफारिशों  के प्रकाशित  होने के बाद इन याचिकाओं में यदि जरूरी हुआ तो संशोधन होगा
  (पंजाब केसरी,दिल्ली,1 नवम्बर 2011) 
                                                                                                                                                                                                                                                                  
वर्तमान समय में समाचार पत्र मालिकों की सोच उस लालची व्यावसायी की तरह कुंठित होती जा रही है जो अपने व्यावसाय से आने वाली पूरी रकम को सिर्फ अपने बैलेंस शीट को बढ़ाने में प्रयोग करता है लेकिन अपने मूल आधार मानव संसाधन के वेतन और अन्य सुविधाओं पर खर्च को वह फालतू का खर्च मानने लगता है। वर्तमान समय में ऐसी स्थिति लगभग सभी प्रेस मालिकों की होती जा रही है।

अब ऐसे में एंटोनी का यह बयान कि सरकार जल्द ही इस सम्बंध में अपना फैसला सुनायेगी, मीडिया मालिकों की नींद हराम कर दिया है। जहां एक ओर इससे समाचार पत्रों में कार्य करने वाले कर्मचारी खु हुए है वहीं दूसरी ओर मालिक वर्ग में काफी गमगीन माहौल हो गया है।अब प्रश्न यह उठता है कि क्या सरकार इन मीडिया मालिकों को नाखुश कर इस सिफारिश को वास्तव में लागू करेगी या यह सब सिर्फ चुनावी प्रोपगंडे के तहत इन कर्मचारियों को सिर्फ खुश करने का कोई नयी चाल मात्र है  अब हर मीडिया कर्मचारी बस इस बात की बाट जोह रहा है कि केंद्र सरकार का आने वाला फैसला किसके पाले में होगा?...

No comments:

Post a Comment