Saturday, June 11, 2011

निरंकुश सरकार की विफल योजनाएं


हमारे देश के आर्थिक निति निर्धारण की बहुत बड़ी जिम्मेदारी का निर्वाह करने वाली योजना आयोग का गठन १५ मार्च १९५० में प्रधानमन्त्री जवाहर लाल नेहरु के नेतृत्व में हुआ था .वर्तमान समय में मोंटेक सिंह अहलूवालिया योजना आयोग के उपाध्यक्ष पद को सुशोभित कर रहें हैं और प्रधानमन्त्री इसके पदेन अध्यक्ष होते हैं .तात्कालिक समय में योजना आयोग का गठन इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया गया कि राष्ट्र के सभी प्रकार के संसाधनों का आकलन कर उनको निर्धारित समय के अनुसार निवेश किया जाए ताकि निश्चित दर से राष्ट्र का विकास हो सके और लोगों की मूलभूत जरूरतों की पूर्ति की जा सके .सरल भाषा में कहें तो राष्ट्र की अर्थव्यवस्था की प्रगति की दर और उसकी दिशा दोनों को लक्ष्यों के अनुसार गतिशील किया जा सके इसलिए ही योजना आयोग का गठन किया गया .देश के समग्र विकास के लिए पंचवर्षीय योजना बनाने का काम योजना आयोग का ही है .आयोग की सिफारिश पर विभिन्न क्षेत्रों में कार्य समूह ,संचालन समितियां ,टास्क फ़ोर्स बनाई जाती हैं .यह समितियां आयोग को रिपोर्ट न करके सीधे मंत्रालयों को रिपोर्ट करती हैं . इन समितियों में सम्बंधित विषयों के विशेषज्ञों को सदस्य बनाया जाता है और उनकी विशेषज्ञता का लाभ योजनाओं का मसौदा बनाने में लिया जाता है .प्रत्येक समिति का अपना विधान होता है और यह समिति के अध्यक्ष के नियंत्रण में होती है . 

इस आयोग की विशेषता का उल्लेख करें तो  पिछले दो दशकों के दौरान देश की आर्थिक नीतियों में हुए परिवर्तनों के सन्दर्भ में योजना आयोग की प्रासंगिकता पर कई  सवालिया निशान लगाये गए हैं .वर्तमान केंद्र सरकार के शहरी विकास मंत्री ने योजना आयोग के बारे में कहा था कि 'यह सुविधाजीवी बुद्धिजीवियों का अड्डा है ,जो जमीनी वास्तविकता से काफी दूर है '.इसी प्रकार वित्त मंत्रालय कि शिकायत रही है कि योजना आयोग उसके अधिकार क्षेत्र में अनाधिकृत हस्तक्षेप करता है .पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने अपनी चिर - परिचित शैली में योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया को पर्यावरण विरोधी घोषित कर चुके हैं .नयी रेल परियोजनाओं की मंजूरी को लेकर रेलमंत्री व योजना आयोग के उपाध्यक्ष के मध्य लगातार शीतयुद्ध चलता रहा है .इसका सीधा अर्थ यह है की योजना आयोग की कार्यशैली को लेकर सरकार में शामिल कुछ मंत्रीगण भी असहज महसूस कर रहें हैं किन्तु सत्ता का लोभ उन्हें खुलकर सामने आने पर विवश कर रहा है .  नियोजित विकास के लगभग ६० वर्ष पूरा होने के पश्चात् उदारीकरण और खुले बाज़ार के दौर में योजना आयोग के औचित्य पर सवाल उठने लगे हैं .

योजना आयोग के १९९९ से २००४ के मध्य सदस्य रहे सोमपाल शास्त्री ने स्वयं स्वीकार किया है कि अपने पूरे कार्यकाल में योजना आयोग अपनी उस भूमिका का निर्वाह नहीं कर सका है ,जिसकी परिकल्पना उसके निर्माण के समय की गयी थी . इनके अनुसार योजना आयोग की आवश्यकता के साथ - साथ इसमें कुछ खामियां भी हैं .उसने अपने मूल दिशा - निर्देशों का अक्षरश: पालन नहीं किया .कभी भी राष्ट्र के वित्तीय,प्राकृतिक और मानवीय संसाधनों का समग्र आधार तैयार नहीं किया .विभिन्न विभागों द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों पर ही आयोग निर्भर रहा .इन आंकड़ों का संकलन ,प्रस्तुतीकरण और विश्लेषण की पक्रिया सदैव संदिग्ध रही .योजना आयोग आर्थिक निवेश के वांछित प्राथमिकता क्रम से एकदम भटक गया .उसने भारी उधोगों और सार्वजनिक उपक्रमों की भूमिका पर जोर दिया .समाज के विभिन्न क्षेत्रों के संतुलित विकास के नाम पर लाइसेंस ,कोटा और परमिट राज बनने के कारण जिस अकुशलता और भ्रष्टाचार का जन्म हुआ उससे न केवल देश की आर्थिक प्रगति बाधित हुई बल्कि देश के दुर्लभ संसाधनों का जो उत्पादक उपयोग होना चाहिए था वह नहीं हुआ .

४० वर्ष के लाइसेंस परमिट राज व योजना आयोग की नियंत्रित अर्थव्यवस्था का नतीजा बहुत संतोषजनक नहीं रहा .इस अवधि के दौरान देश की आर्थिक विकास की दर ३.५ प्रतिशत से आगे नहीं बढ़ पाई.शिक्षा ,स्वास्थ्य,जैसे आम आदमी से जुडी विकास के पैमानों पर आज भी देश की स्थिति असंतोषजनक है .११ वीं पंचवर्षीय योजनाओं के बाद भी १ से पांच वर्ष की आयु वर्ग के लगभग ४० प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं .शिशु व मात्र मृत्यु दर के मामले में भारत की स्थिति बांग्लादेश से भी खराब है .१९९१ में भारत की अर्थव्यवस्था ऐसे मोड़ पर आकर खड़ी हो गयी कि देश को विदेशी कर्ज चुकाने के लिए सोना तक गिरवी रखने के लिए मजबूर होना पड़ा .तात्कालिक समय में देश के वित्तमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह जी थे .

तब से अब तक योजना आयोग के तमाम योजनाओं के बाद भी देश के लगभग सभी राज्य पानी ,बिजली व आधारभूत सुविधाओं के अभाव से जूझ रहें है .हालांकि केंद्र सरकार ने २०१२ से शुरू होने वाली १२ वीं पंचवर्षीय योजना में १०० प्रतिशत साक्षरता व समन्वित विकास को पाने का लक्ष्य रखा है . लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि जब सरकार ही भ्रष्टाचार के मामले में लिप्त है तो सरकार द्वारा अपरोक्ष रूप से संचालित योजना आयोग की योजनायें आम आदमी के लिए कितनी कारगर रहीं  हैं  या होंगी . यह तो हर आम आदमी के संज्ञान में है .अब तो बस आम आदमी को सरकार के रहमो -करम  पर ही चलना है .जय हो सरकार की .... जय हो सरकारी योजनाओं की ...

Sunday, June 5, 2011

बाबा रामदेव पर बरसा भ्रष्टाचारियों का कहर


४ जून २०११ की रात भारत के लोकतंत्र की काली रात के रूप में इतिहास के पन्नों पर लिखा जायेगा .एक सन्यासी द्वारा सामाजिक सरोकार के मुद्दे पर अहिंसात्मक ढंग से किये जाने वाले अनशन को बेलगाम होती कांग्रेस सरकार ने बड़ी बर्बरता से कुचल डाला .बाबा रामदेव द्वारा देशहित में विदेशी बैंकों में जमा काले धन को देश में वापस लाने के लिए किये जाने वाले उपवास को तोड़ने हेतु जब सत्ता पर काबिज कांग्रेस सरकार अपने हर फार्मूले का प्रयोग कर हार गयी तो उसने ४ – ५ जून की रात में रामलीला मैदान में अपनी क्रूरता  का प्रदर्शन किया .


रात के समय बाबा के समर्थन में दिल्ली के रामलीला मैदान में जमा हुए लाखों लोगों की उपस्थिति में दिल्ली सरकार के आदेश पर पुलिस ने वहां लाठी चार्ज किये और आंसू गैस भी छोड़े . जबकि केंद्र सरकार में शामिल केन्द्रीय मंत्री कपिल सिब्बल जी ने ४ जून की शाम को एक प्रेस कांफ्रेंस कर यह बताया की बाबा रामदेव का कार्यक्रम प्रायोजित था और उन्होंने २४ घंटे पूर्व ही सहमति पत्र दे दिया था और अनशन समाप्त करने की बात कही थी . अगर सिब्बल जी की माने तो बाबा रामदेव ने राजनितिक ड्रामा खड़ा करने और अन्ना हजारे की तरह सिर्फ नाम बनाने के लिए यह यह सब किया है .लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि जब सरकार अपने इरादों में इतनी मजबूत थी कि वह ये साबित कर देगी कि बाबा रामदेव झूठे हैं , तो उसे यह बर्बरतापूर्ण कार्य करने की क्या जरूरत आ पड़ी ? इसका सीधा सा आशय यह निकलता है कि सरकार का आसन रामदेव के अनशन से हिल गया है और सत्ताधारी भ्रष्टाचारियों को अब ये लगने लगा था कि उनकी पोल खुलने वाली है .
लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाने वाला यह निंदनीय घटना भारत देश के गौरव पर कालिख लगा गया . अगर देखा जाये तो आखिर कौन सी मांग को लेकर यह सन्यासी उपवास पर बैठा है , यही न कि विदेशी बैंकों में जमा देश के भ्रष्टाचारियों द्वारा  २४० लाख करोड़ रुपये का काला धन देश में वापस लाया जाये और उसे राष्ट्रीय संपत्ति घोषित की जाये , जिससे केवल देश का ही नहीं बल्कि आम आदमी का भी विकास होगा और इस देश को भूखों और नंगों का देश कहने वालों के मुंह पर ताला लग जायेगा .यही नहीं बल्कि यह काला धन देश में वापस आने से भूखों का देश कहे जाने वाले भारत में कोई भी व्यक्ति भूखा नही रह सकेगा  और इसके साथ ही साथ रोजगार के कई अवसर भी उपलब्ध होंगे क्योकि सामाजिक क्षेत्रों में काम करने वाली ५००  योजनायें जो की धन के अभाव में कार्यान्वित नहीं हो रहीं है इस काले धन के वापस देश में आ जाने से  शुरू की जा सकेंगी .
बाबा रामदेव या अन्ना हजारे जैसे लोग अगर देश व समाज के हित में ऐसा कोई प्रयास करते है तो उनके प्रयास को सत्ताधारियों द्वारा दमनकारी तरीकों से दबा दिया जाता है और हम बड़े गर्व के साथ कहते है कि हमारा देश प्रजातान्त्रिक देश है .अगर वास्तव में प्रजातान्त्रिक देश का परिदृश्य इस प्रकार का होता है तो इससे तो अच्छा यही होता कि देश गुलाम ही रहता . 


Friday, June 3, 2011

बाबा रामदेव का भ्रष्टाचार के विरुद्ध हल्ला-बोल


देश में बढ़ रहें भ्रष्टाचार को खत्म करने  और विदेशों में जमा काला धन अपने देश में वापस लाने के मुद्दे पर अब देश के सारे बुद्धजीवियों के चुप्पी साधे रहने के बाद योग गुरु बाबा रामदेव ने इस मुद्दे की कमान अपने हाथों में लेते हुए ४ जून से दिल्ली स्थित जंतर - मंतर पर अनिश्चितकालीन उपवास  की घोषणा कर दी है  और स्पष्ट शब्दों में कहा है कि जब तक सरकार विदेशी बैंकों में जमा काला धन वापस नहीं लाती  तब तक वह उपवास नहीं तोड़ेंगे .देश के इतिहास में यह पहली बार है कि एक सन्यासी ने  देश की जनता की विकास व भारतमाता की व्यथा के समाधान के लिए सत्ता बल को अपने उपवास के नैतिक बल से चुनौती दी है। 

'भारतीय गरीब हो सकते हैं लेकिन भारत गरीब नहीं है ' यह कहना है स्विस बैंक के डायरेक्टर का और उन्होंने ने यह भी कहा है कि भारत का लगभग २८० लाख करोड़ रुपये (२८०,००,०००,०००,०००) उनके स्विस बैंक में जमा है .यह इतनी बड़ी रकम है कि देश के आने वाले ३० सालों का बजट बिना टैक्स के बनाया जा सकता है या यह भी कह सकते हैं कि ६० करोड़ रोजगार के अवसर दिए जा सकते है.अगर यह काला धन देश में वापस आ जाये तो ५०० से अधिक सामाजिक प्रोजेक्ट पूर्ण होने के साथ -साथ भारत के किसी भी गाँव से दिल्ली तक  लेन रोड बनाया जा सकता है.यही नहीं बल्कि यह रकम इतनी ज्यादा है कि अगर हर भारतीय को २०००  रुपये हर महीने भी दिए जाये तो ६० साल तक ख़त्म ना हो.इसका अर्थ यह है कि देश को किसी वर्ल्ड बैंक से लोन लेने की कोई जरुरत नहीं है.

अंग्रजों द्वारा भारत पर २०० साल तक राज कर देश का लगभग १ करोड़ रुपये लुटा गया लेकिन आज़ादी के मात्र ६४ सालों में देश के भ्रष्टाचारियों द्वारा २८० लाख करोड़ रूपया लुटा गया है . एक तरफ २००  साल में १  लाख करोड़ है और दूसरी तरफ केवल ६४  सालों में २८०  लाख करोड़ है अर्थात  हर साल लगभग ४.३७  लाख करोड़या हर महीने करीब ३६ हजार करोड़ भारतीय मुद्रा स्विस बैंक में इन भ्रष्ट लोगों द्वारा जमा करवाई गई है.जरा सोचिये … हमारे भ्रष्ट राजनेताओं और नोकरशाहों ने कैसे देश को लूटा है और ये लूट का सिलसिला अभी तक जारी है.

अन्ना हजारे के बाद अब बाबा रामदेव ने जब इस भ्रष्टाचार के विरुद्ध जंग छेड़ी तो देश की सत्ता पर काबिज कांग्रेस सरकार के साथ -साथ सभी भ्रष्टाचारियों के मध्य हलचल पैदा हो गयी है और सरकार के तीनों बंदरों के साथ सभी भ्रष्टाचारी उन्हें मनाने में जोड़ - तोड़ लगा दिए है .अब देखना यह है कि जिस सामाजिक सरोकार के मुद्दे को लेकर बाबा रामदेव अनशन पर बैठने जा रहें हैं वो कितना सफल साबित होता है ? या फिर कहीं अन्ना की ही तरह बाबा रामदेव के इस अनशन को भी राजनितिक दाव पेंच में ही उलझा कर रख दिया जायेगा .....