Friday, July 29, 2011

साम्प्रदायिक और लक्ष्यित हिंसा (न्याय तक पहुंच और हानिपूर्ति)विधेयक,२०११

 राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) ने 14 जुलाई 2010 को सांप्रदायिकता विरोधी बिल का खाका तैयार करने के लिए एक प्रारूप समिति का गठन किया था और 28 अप्रैल 2011 की एनएसी बैठक के बाद नौ अध्यायों और 138 धाराओं में तैयार हिंदी व अंग्रेजी  में अनूदित बिल लोगों की सलाह के लिए एनएसी की  वेबसाइट http://www.nac.nic.in/ पर डाला गया है ।राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी)  की अध्यक्ष कांग्रेस सुप्रीमों सोनिया गाँधी जी हैं .इस विधेयक के प्रारूप समिति सदस्य में कुछ निम्न लोग सम्मिलित हैं , जिनके  नाम कुछ इस प्रकार से हैं -
१. गोपाल सुब्रमनियम 
२. माजा  दारूवाला 
३. नजमी वजीरी 
४. पी.आई.जोस 
५. प्रसाद सिरिवेल्ला 
६. तीस्ता सीतलवाड़
७. उषा रामनाथन ( २० फ़रवरी २०११ से अब तक )
८.वृंदा ग्रोवर  (२० फ़रवरी २०११ से अब तक)
 इस विधेयक के  प्रारूप समिति के  संयोजकों में  फराह  नकवी और हर्ष मंढेर के नाम सम्मिलित हैं . इसके अतिरिक्त इस विधेयक के प्रारूप समिति में सलाहकार सदस्य  के रूप में अरुणा राय ,प्रोफ़ेसर जाधव और अनु आगा ,जो एनएससी के कार्यप्रणाली समिति सदस्य भी है, के नाम मुख्य रूप से सम्मिलित है . इनके अतिरिक्त १९ सदस्य और सलाहकार समिति में शामिल है ,जिनका पूर्ण विवरण http://nac.nic.in/communal/advisorygroup.htm पर उपलब्ध है .
साम्प्रदायिक और लक्ष्यित हिंसा(न्याय तक पहुंच और हानि पूर्ति) विधेयक,२०११  का विधेयक संख्यांक  जो कि हिंदी में अनुवादित है कुछ इस प्रकार से है -
  साम्प्रदायिक और लक्ष्यित हिंसा(न्याय तक पहुंच और हानि पूर्ति) अधिनियम,२०११ 
भारत गणराज्य के बासठवें वर्ष में संसद द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो :-
 संक्षिप्त नामविस्तार और प्रारम्भ
धारा १. (१) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम "साम्प्रदायिक और लक्ष्यित हिंसा(न्याय तक पहुंच और हानि पूर्ति) अधिनियम,२०११" है
  (२) इसका विस्तार सम्पूर्ण भारत में है :
परंतु केंद्रीय सरकारजम्मू-कश्मीर राज्य के सहमति से इस अधिनियम को उस राज्य में विस्तारित कर सकेगी .
  (३) यह इस अधिनियम के पारित किए जाने की तारीख से एक वर्ष के भीतर प्रवृत्त होगा .
इसी क्रम में धारा २ में 'ऐसे अपराधों के लिए दंडजो भारत के बाहर कारित किए गए है किन्तु जिनका विचारण विधि द्वारा भारत के भीतर किया जा सकेगा सम्मिलित है .इस प्रकार से इस विधेयक में कुल ९ अध्याय हैं जिनमें कुल १३८ धारा और ४ अनुसूची शामिल हैं जिसे http://nac.nic.in/communal/com_bill.htm इस लिंक पर जाकर हिन्दी या अंग्रेजी दोनों ही भाषाओँ में डाउनलोड कर देखा जा सकता है .
इस विधेयक का उद्देश्य बताया गया है कि यह देश में साम्प्रदायिक हिंसा को रोकने में सहायक सिद्ध होगा। इसको अध्ययन करने पर ध्यान में आता है कि यदि दुर्भाग्य से यह पारित हो जाता है तो इसके परिणाम केवल विपरीत ही नहीं होंगे अपितु देश में साम्प्रदायिक विद्वेष की खाई इतनी चौडी हो जायेगी जिसको पाटना असम्भव हो जायेगा।यहां तक कि एक प्रमुख सैक्युलरिस्ट पत्रकार,शेखर गुप्ता ने भी स्वीकार किया है कि,इस बिल से समाज का साम्प्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण होगा। इसका लक्ष्य अल्पसंख्यकों के वोट बैंक को मजबूत करने के अलावा हिन्दू संगठनों और हिंदू नेताओं का दमन करना है।‘’   
इस विधेयक के पारित कराये जाने वाली समिति के सदस्यों का परिचय कुछ इस प्रकार से है - हर्ष मंडेर रामजन्मभूमि आन्दोलन और हिन्दू संगठनों के घोर विरोधी हैं। अनु आगा जो कि एक सफल व्यवसायिक महिला हैंगुजरात में मुस्लिम समाज को उकसाने के कारण ही एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में पहचानी जाती है । तीस्ता सीतलवाड और फराह नकवी की गुजरात में भूमिका सर्वविदित है। उन्होंने न केवल झूठे गवाह तैयार किये हैं अपितु देश विरोधियों से अकूत धनराशी प्राप्त कर झूठे मुकदमे दायर किये हैं और जांच प्रक्रिया को प्रभावित करने का संविधान विरोधी दुष्कृत्य किया है। आज इनके षडयंत्रों का पर्दाफाश हो चुका हैये स्वयं न्याय के कटघरे में कभी भी खडे हो सकते हैं।
इस विधेयक के अंतर्गत घोषित सलाहकारों का परिचय कुछ इस प्रकार से हैं- जिनमें  'मुस्लिम इन्डिया” चलाने वाले सैय्यद शहाबुद्दीनधर्मान्तरण करने के लिये विदेशों में भारत को बदनाम करने वाले जोन दयाल , हिन्दू देवी-देवताओं का खुला अपमान करने वाली शबनम हाशमी और नियाज फारुखी हैं  
साम्प्रदायिक और लक्षित हिंसा अधिनियम २०११ के कुछ प्रावधान इस प्रकार से हैं -
अधिनियम की धारा १ के उपधारा २ के अंतर्गत इसका प्रभाव क्षेत्र सम्पूर्ण भारत पर होगा लेकिन जम्मू-कश्मीर में राज्य के सहमति से इसे विस्तारित किया जायेगा .यह अधिनियम पारित किये जाने की तारीख से १ वर्ष के अंतर्गत लागू होगा तथा ऐसे अपराध जो भारत के बाहर  भी किये गए हैं उन पर भी इस अधिनियम के उपबंधों के अंतर्गत उसी प्रकार कार्यवाही होगी जैसे वह भारत के भीतर किया गया हो .
१ वर्ष के अंतर्गत लागू किये जाने की बाध्यता को रखकर यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है कि सोनिया गांधी के यूपीए सरकार के रहते ही यह कानून अनिवार्य रूप से लागू कर दिया जाए .
* अधिनियम की धारा ३(ग) के अंतर्गत जानबूझ कर किसी व्यक्ति के विरूद्ध किसी समूह की सदस्यता के आधार पर ऐसा कोई कार्य या कार्यों की श्रृंखला जो चाहे सहज हो या योजनाबद्ध जिसके परिणाम स्वरुप व्यक्ति या संपत्ति को क्षति या हानि पहुंचती है,दंडनीय अपराध है. 
 अधिनियम की धारा ३ (ड.) के अनुसार भारत संघ के किसी राज्य में कोई धार्मिक एवम भाषायी अल्पसंख्यक या भारतीय संविधान के अनुच्छेद ३६६ खंड २४ व २५ के अंतर्गत अनुसूचित जातियां और अनुसूचित जनजातियां समूह के अंतर्गत आती हैं और इन्हीं समूह पर किये गए अपराध के लिए यह कानून प्रभावी होता है .
अब यहां प्रश्न यह उठता है कि समूह के अंतर्गत शामिल किये गये धार्मिक अल्पसंख्यक क्या साम्प्रदायिक या लक्ष्यित हिंसा में सम्मिलित नहीं होते ?
दूसरा प्रश्न यह है कि यदि दो समूहों के मध्य में ही साम्प्रदायिक हिंसा होती है तो यह कानून किस प्रकार प्रभावी होगा अर्थात उड़ीसा में अनुसूचित जनजातियों और ईसाईयों के मध्य संघर्ष या केरल में ईसाईयों एवं मुस्लिमों के बीच संघर्ष की स्थिति में इस कानून की क्या भूमिका होगी ?  .
* अधिनियम की धारा ३ (च) के अनुसार इस अधिनियम में परिभाषित समूह  के किसी व्यक्ति का समूह  की सदस्यता के आधार पर व्यापार या कारोबार का बहिष्कार या जीविका अर्जन करने में उसके लिए अन्यथा कठिनाई पैदा करना ,तिरस्कार पूर्ण कार्य से सार्वजनिक रूप से शर्मिंदा करना या ऐसा कोई अन्य कार्य करना. चाहे वह इस अधिनियम के अधीन अपराध हो या न हो परन्तु जिसका प्रयोजन एवं प्रभाव भयपूर्ण शत्रुता या आपराधिक वातावरण उत्पन्न करना हो ,इस अधिनियम के अंतर्गत अपराध के श्रेणी में आता है .
यह ऐसे विषय हैं जिनको निश्चित करना बहुत कठिन है कहने का तात्पर्य यह है कि कोई व्यक्ति किस बात से अपने आपको शर्मिंदा अनुभव करेगा या उसे कौन सा कार्य भयपूर्ण लग सकता है यह निर्धारित कर पाना अत्यंत कठिन है .
अधिनियम की धारा ३(ञ) के अनुसार अपराध के फलस्वरूप  किसी समूह का कोई व्यक्ति शारीरिक मानसिक मनोवैज्ञानिक या आर्थिक हानि उठाता है तो न केवल वह अपितु उसके नातेदार विधिक संरक्षक और विधिक वारिस भी पीड़ित माने जायेंगे .
यहां यह समझ से परे है कि मानसिक व मनोवैज्ञानिक हानि को किस प्रकार से मापा जाएगा?     
अधिनियम की धारा ८ के अनुसार शब्दों द्वारा या तो बोले गए या लिखित या इशारों द्वारा या दृश्यमान चित्रण को या किसी भी ऐसे कार्य को प्रकाशित , संप्रेषित या प्रचारित करना , जिससे किसी समूह या समूह के व्यक्तियों के विरुद्ध सामान्यतया या विशिष्टतया हिंसा का खतरा होता है या कोई ऐसा व्यक्ति ऐसी सूचना  का प्रसारण या प्रचार करता है या कोई ऐसा विज्ञापन व सुचना प्रकाशित करता है जिसका अर्थ यह लगाया जा सकता हो कि इसमें घृणा को बढ़ावा देने या फैलाने का आशय निहित है .उस समूह के व्यक्तियों के प्रति ऐसी घृणा उत्पन्न होने की संभावना के आधार पर वह व्यक्ति दुष्प्रचार का दोषी है .
ऐसी स्थिति में अगर किसी समाचार पत्र द्वारा आतंकवाद की किसी गतिविधि में सम्मिलित समूह के लोगों के नाम प्रकाशित करने की स्थिति में भी उस समूह के प्रति घृणा की भावना उत्पन्न हो सकती है .अतः अजमल कसाब और अफजल गुरु का नाम भी समाचार पत्रों में प्रकाशित करना भी अपराध के श्रेणी में आएगा .
आतंकवाद के ऊपर किसी परिचर्चा या राष्ट्रीय सेमीनार में किसी समूह के लोगों के संलिप्तता पर कोई चर्चा नहीं हो सकेगी .अतः यह कानून अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भी अंकुश लगता है .
ड्राफ्ट समिति की स्दस्य अनु आगा ने अप्रैल ,२००२ में कहा था,” यदि अल्पसंख्यकों को पहले से ही तुष्टीकरण और अनावश्यक छूटें दी गई हैं तो उस पर पुनर्विचार करना चाहिये। यदि ये सब बातें बहुसंख्यकों के खिलाफ गई हैं तो उनको वापस लेने का साहस होना चाहिये। इस विषय पर सार्वजनिक बहस होनी चाहिये।(इन्डियन एक्स.,८ अप्रैल,२००२). इन नौ वर्षों में अनु आगा ने इस विषय में कुछ नहीं किया। 
एक अन्य सैक्युलर नेता,सैम राजप्पा ने लिखा है,” आज जबकि देश साम्प्रदायिक हिंसा से मुक्ति चाहता हैयह अधिनियम मानकर चलता है कि साम्प्रदायिक दंगे बहुसंख्यक के द्वारा होते हैं और उनको ही सजा मिलनी चाहिये। यह बहुत भेदभावपूर्ण है।(दी स्टेट्समैन,६जून,२०११)  
सलाहकार परिषद के ही एक सदस्यएन.सी. सक्सेना ने कहा था ,” यदि अल्पसंख्यक समुदाय के किसी व्यक्ति द्वारा बहुसंख्यक समाज के किसी व्यक्ति पर अत्याचार होता है तो यह विषय भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत आयेगाप्रस्तावित अधिनियम में नहीं।” (दी पायनीयर,२३ जून,२०११) 
इस कानून का संरक्षण केवल बहुसंख्यक समाज के लिये नहीं अल्पसंख्यक समाज के लिये भी है। फिर इस अधिनियम की आवश्यक्ता ही क्या हैक्या इससे उनके इरादों का पर्दाफाश नहीं हो जाता? अतः भारत के बहुसंख्यक समाज को अब चेतना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि क्या वह आजाद हिन्दुस्तान में अब द्वितीय श्रेणी की नागरिकता में जीवनयापन के लिए तैयार हैं . 


Wednesday, July 13, 2011

आतंकी अंक बन रहा १३


१३ जुलाई २०११ फिर एक बार दहली मुंबई . आतंकियों ने फिर मचाया तांडव और फिर एक बार सरकार द्वारा शांति बनाये रखने की अपील जारी.शाम के ६.५४ मिनट से ७ .५ मिनट तक सिलसिलेवार तीन बम धमाका पहला जवेरी रोड ,दूसरा चर्नी बाज़ार व तीसरा ओपेरा हाउस .अब तक २१ लोगों के मरने व १४१ लोगों के घायल होने की पुष्टि हो चुकी है . १३ अंक भारत की सुख और शान्ति भंग होने का संकेत दे रही है . १३ अंक से तात्पर्य यहां १३ तारीख से है .इसके पूर्व में भी १३ तारीख आम जनता के लिए आतंक का पर्याय बन चुका है .

 गौरतलब है कि १३ दिसम्बर २००१ को ही भारत के संसद भवन पर ५ हथियार बंद आतंकवादियों ने हमला किया था , लेकिन वहां उपस्थित सुरक्षा बलों के जवानों की मुस्तैदी ने उन्हें संसद भवन के अन्दर प्रवेश नहीं करने दिया , हांलाकि इस संघर्ष में १ नागरिक व ६ सुरक्षाकर्मी शहीद हो गये थे .

इसी प्रकार १३ मई २००८ देश का सबसे सुन्दर पर्यटन स्थल व गुलाबी शहर कहलाने वाला जयपुर भी आतंकियों के आतंक का शिकार बना .इस शहर में पहली बार कोई आतंकवादी हमला हुआ ,वह भी सिलसिलेवार ९ बम ब्लास्ट हुए जिसमें ६३ लोगों की मृत्यु हुई थी व २१६ लोग घायल हुए थे .१३ का आंकड़ा यहां भी नहीं रुका अब बारी थी महाराष्ट्र की.१३ फरवरी २०१० पुणे स्थित एक जर्मन बेकरी में जबरदस्त बम धमाका हुआ , जिसमें इटली की १ महिला ,सुडान के २ और ईरान के १ छात्र सहित १७ लोगों की मृत्यु हो गयी और ६० लोग घायल हो गये थे और फिर एक बार १३ तारीख आतंकियों के दरिंदगी का पर्याय बन गया है .

हालांकि दिल्ली सहित उन सभी राज्यों में हाईअलर्ट घोषित कर दिया गया है पूर्व में आतंकी हमले हो चुके है या जहां होने की सम्भावना है  और घटनास्थल पर बचाव कार्य जारी है .ऐसे दुखद क्षण में प्रधानमन्त्री व राष्ट्रपति ने सभी देशवासियों से शान्ति बनाए रखने की अपील की है .
amal 

Tuesday, July 5, 2011

चौथे स्तम्भ की भूमिका पर भी सवाल


लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहे जाने वाले मीडिया केलिए  पिछले कुछ महीनों में आमरण अनशन व धरना प्रदर्शन जैसे मसालों का भरमार रहा  कभी अन्ना हजारे द्वारा जन लोकपाल विधेयक को लेकर जंतर - मंतर पर किया गया प्रदर्शन तो कभी बाबा रामदेव  द्वारा देश से भ्रष्टाचार को खत्म करने और विदेशी बैंकों में जमा ४ सौ लाख करोड़ रुपये देश में वापस लाकर उसे राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करने के लिए दिल्ली के रामलीला मैदान में किया गया आमरण अनशन  अन्ना हजारे व बाबा रामदेव दोनों ने ही राष्ट्रीय हित के मुद्दे को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर अपना आन्दोलन किया जिसे मीडिया ने भी अपने - अपने तरीके से प्रस्तुत किया . एक तरफ जहां हिंदी मीडिया ने ख़बरों को विस्तृत रूप में दिखाया वही अंग्रेजी मीडिया ने ख़बरों पर प्रश्न चिन्ह लगाते हुए मामलों को आशंकाओं के घेरे में ला कर खड़ा कर दिया और जनता को जवाबदेह बना दिया . लेकिन अगर बात अंग्रेजी और हिंदी मीडिया की करे तो यह बात तटस्थ है कि आरम्भ से ही दोनों की खबरों के प्रस्तुति में असमानता रही है .
यह बात तो सबके संज्ञान में भी है कि हिंदी मीडिया का जन्म ही क्रांति के लिए हुआ था और स्वतंत्रता प्राप्ति में हिंदी मीडिया का बहुत बड़ा योगदान भी था इसके विपरीत अंग्रेजी मीडिया के जनक ब्रिटिश शासक थे ,जो कि सिर्फ 'फूट डालो और राज करो ' की नीति पर काम करते थे . इसका तात्पर्य यह है कि जिनकी नीति ही गलत थी उनके विचार कैसे अछे हो सकते थे और यही अंतर इन दोनों मीडिया के अन्दर अब भी समावेशित है .इसीलिए खबरों का स्वरुप भी दोनों मीडिया में अलग - अलग है .
अन्ना हजारे और बाबा रामदेव के मामले पर मीडिया के कवरेज की चर्चा करने से पूर्व यहां यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि आखिरकार मामला है क्या ?
अन्ना हजारे द्वारा जनलोकपाल विधेयक लाये जाने का समर्थन करना और उसको राष्ट्रीय स्तर पर लाना कितना सार्थक है यह जानना अतिआवश्यक है . अन्ना ने जिस लोकपाल विधेयक को लेकर आमरण अनशन किया और प्रधानमन्त्री और न्यायाधीशों को कटघरे में लाने की बात की है. उससे कितना प्रभाव पड़ेगा और कितनी स्पष्टता होगी यह कोई नही जानता क्योकि लोकपाल का दायित्व इतना मात्र है कि अगर प्रधानमन्त्री के ऊपर भी भ्रष्टाचार को लेकर कोई आरोप लगता है तो वह एक जांच कमेटी बना कर उसकी रिपोर्ट मुख्य न्यायाधीश को सौप देगा . हालांकि इसके लिए पूर्व से ही सीबीआई को यह अधिकार प्राप्त है लेकिन अन्ना को लगता है कि सीबीआई केंद्र सरकार के अधीनस्थ है , इसलिए जांच रिपोर्ट सत्य नहीं हो सकती लेकिन अन्ना इस बात से सहमत है कि लोकपाल विधेयक कमेटी में सरकार के भी ५ सदस्य शामिल हो सकते है . तो यहां स्पष्टता के लिए जगह कहा रह जाती है . सरकार अगर अन्ना की बात मान भी लेती है तो इस लोकपाल को अप्रत्यक्ष रूप से सरकार का रिमोट ही चलाएगा . 
अब अगर बाबा रामदेव के आन्दोलन की चर्चा करे तो बाबा ने जो मुद्दा उठाया है कि ४ सौ लाख करोड़ रुपये का काला धन जो विदेशी बैंकों में जमा है वो देश में वापस ला कर उसे राष्ट्रीय संपत्ति सरकार द्वारा घोषित की जाए. विदेशी बैंकों में काले धन के रूप में देश की इतनी बड़ी संपत्ति अगर जमा है तो स्वाभाविक रूप से वो आम आदमी द्वारा जमा करायी गयी नहीं होगी . इसमें देश के बड़े - बड़े पूंजीपति और नेता मुख्य रूप से शामिल होंगे और जब देश इन्हीं के हाथ की कठपुतली है तो कौन चाहेगा की बाबा रामदेव का आन्दोलन सफल हो . बाबा रामदेव का आन्दोलन देश के आम आदमी का आन्दोलन है ,देश के आम आदमी की आवाज़ है इसके विपरीत अन्ना का आन्दोलन आम आदमी के हित से जुड़ा आन्दोलन न होकर सिर्फ शासन प्रणाली में थोड़े सुधार से जुड़ा मुद्दा है ,जबकि लोकपाल विधेयक भी पूर्ण रूप से व्यवस्था परिवर्तन नहीं कर सकेगा .
अब अगर इन दोनों राष्ट्रीय स्तर की खबरों पर मीडिया कवरेज की बात करे तो महाराष्ट्र से चलकर दिल्ली आए अन्ना हजारे जन लोकपाल बिल को लाने के लिए अनशन पर जब बैठे तो इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने इसे २४ घंटों का कवरेज दिया  वहीं प्रिंटमीडिया भी उनसे संबंधित खबरों से सराबोर दिखायीदी  इसका कारण वहां राजनीति  फिल्मी जगत के चर्चित चेहरों का दिखाई देना था  क्रिकेट वर्ल्ड कप की खबरें परोसने के बाद सभी चैनलों और समाचार पत्रों में अन्ना हजारे सिलेब्रिटी के रूप में उभर कर आएं  चार दिनों तक राजनीति के बहुचर्चित चेहरों की बाइट्स मीडिया में बनी रही और उसके बाद अन्ना के आंदोलन को एक सफल आंदोलन के रूप में परोसा गया चाहे उसका अंजाम जो भी रहा हो । इससे थोड़ा हट के शुरुवाती दौर में  बाबा रामदेव के आन्दोलन पर मीडिया की कवरेज मात्र इतनी थी कि बाबा रामदेव दिल्ली के रामलीला मैदान पर आमरण अनशन के लिए बैठ गये है और उनके समर्थको का ताता लगा जा रहा है . इलेक्ट्रोनिक मीडिया में खबरे दिखायी जा रही थी कि लाखों समर्थक उनके दिल्ली के रामलीला मैदान पहुंच रहें हैं . अर्थात मामले को इस प्रकार से परोसा जा रहा था कि अगर इसे यही समाप्त नहीं  किया गया तो दिल्ली तहस - नहस हो जायेगी . जबकि इलेक्ट्रोनिक मीडिया द्वारा ही ४-५ जून को हुई  पुलिसियां कारवाई के समय यह भी दिखाया गया कि बाबा रामदेव ने उस समय भी अपने समर्थकों को यह कहा कि - 'पुलिस चाहे आप पर कितना भी जुल्म करे मेरे कोई भाई उनका जवाब हिंसक रूप में नहीं देंगे'  और इसी घटनाक्रम के दौरान जब बाबा रामदेव ६ घंटों के लिए गायब हो जाते हैं तो यही इलेक्ट्रोनिक मीडिया के कुछ बड़े चैनलों पर खबर को कुछ इस प्रकार से दिखाया जाता है कि - कहीं इस कारवाई में बाबा कि मृत्य तो नहीं हो गयी , कहीं सरकार बाबा को किसी गुप्त जगह छुपा तो नही दी . लेकिन चंद घंटों में जब यह पता चलता है कि बाबा रामदेव हरिद्वार स्थित पतांजलि योगपीठ पहुंच गये हैं तो सारी मीडिया उनके कवरेज के लिए हरिद्वार पहुंच गयी .पतांजलि योगपीठ के आस पास मीडिया का जमावड़ा लग गया . इसके बाद एक बार फिर चैनलों  पर रामदेव जी छा गये .
 जून की सुबह जिस आईबीएन७  इंडिया टीवी पर खबरें इस रूप में चल रहीं थी कि मानों पुलिस और सरकार की मिली भगत से बाबा रामदेव पर बर्बरता पूर्वक कहर ढाया गया हो उसी चैंनल पर कुछ ही घंटों में दिखाये जाने वाले खबर में इतना परिवर्तन आ जाता है कि अब उस चैनल पर खबर कुछ इस प्रकार से प्रस्तुत किया जाता है कि बाबा रामदेव को ही आशंकाओं के घेरे में लाकर खड़ा कर दिया जाता है.अब समाचार कुछ इस प्रकार से - जब बाबा के साथ इतना बड़ा जनसमर्थन था तो बाबा भागे क्यों ? , औरतों के वस्त्र में बाबा भागे , बाबा रामदेव के पास कितने की संपत्ति? आदि . 
पिछले दिनों दैनिक भास्कर की वेबसाइट पर एक खबर थीबाबा रामदेव ने खुद को बताया भगवान राम और महात्मागांधी.हालांकि खबर में रामदेव के हवाले से लिखा गया था कि - मैं तो वही कर रहा हूं जो महात्मा गांधी और भगवान राम ने किया था। जब भगवान राम को नहीं बख्शा गया तो वे मुझे कैसे छोड़ सकते हैं.’इस बयान को यहां ऐसे परोसा गया जिससे हर पाठक को यह लगा कि अब बाबा रामदेव ने स्वयं को महात्मा गांधी और भगवान राम से भी महान बताना शुरु कर दिया.
 यह वही मीडिया है जो कल तक बाबा को मिल रहे भारी जनसमर्थन के पश्चात उनके  आन्दोलन की सराहना कर रही थी और अचानक सरकार के आदेश पर पुलिस द्वारा किये गए लाठीचार्ज के बाद से पूरी घटना का रुख ही मोड़ते दिखाई देने लगी . अब बाबा रामदेव के आन्दोलन की सराहना नहीं बल्कि बाबा के बैंक बैलेंस और उनके नारी वस्त्र धारण कर रामलीला मैदान से भाग जाने की ख़बरें  चैनलों पर प्रस्तुत किया जा रहा था फिर भी यहां प्रिंट मीडिया ने अपनी कर्त्तव्य निष्ठा को बचाए रखते हुए  ख़बरों को उतना तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत नहीं किया जितना कि इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने दीखाया . 
यह तो था अब तक का मीडिया द्वारा इन राष्ट्रीय स्तर के बड़े ख़बरों पर दृष्टिकोण अब इसी जगह मां गंगा को बचाने के लिए खनन माफियाओं के खिलाफ 68 दिनों से अनशनरत हरिद्वार के युवा स्वामी निगमानंद सरस्वती और १०७० दिनों से वाराणसी में आमरण अनशन पर बैठे काशी महाशमशान नाथ के पीठाधिश्स्वर बाबा नागनाथ की चर्चा करें तो यहां मीडिया का रुख कुछ इस प्रकार से था कि निगमानंद जी की मृत्यु के पश्चात उन्हें चैनलों की कवरेज मिली और बाबा नागनाथ को  जिला चिकित्सालय में भर्ती कराये जाने के पश्चात . आखिर ऐसा क्यों है कि इन्हें इन मीडिया चैनलों ने भी अपने चैनल पर जगह देना उचित नहीं समझा ? . इसके पीछे एक कारण स्पष्ट होता है कि अब मीडिया भी मुद्दों को राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचने का इन्तजार करती है .ताकि टीआरपी आसानी से हासिल हो सके . 
सवाल चौथे स्तम्भ की भूमिका की करें तो यह स्तम्भ आज आम आदमी के लिए न्याय की गुहार का अंतिम दरवाजा है .जब आम आदमी हर तरफ से हार मान जाता है तो उसके पास सिर्फ एक ही विकल्प बचता है और वो है 'मीडिया ' . लेकिन अगर घटनाओं पर नजर डाले तो क्या अब ऐसी स्थिति स्पष्ट होती है कि आम आदमी को यहां से भी उचित समर्थन प्राप्त हो सकेगा .