Tuesday, July 5, 2011

चौथे स्तम्भ की भूमिका पर भी सवाल


लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहे जाने वाले मीडिया केलिए  पिछले कुछ महीनों में आमरण अनशन व धरना प्रदर्शन जैसे मसालों का भरमार रहा  कभी अन्ना हजारे द्वारा जन लोकपाल विधेयक को लेकर जंतर - मंतर पर किया गया प्रदर्शन तो कभी बाबा रामदेव  द्वारा देश से भ्रष्टाचार को खत्म करने और विदेशी बैंकों में जमा ४ सौ लाख करोड़ रुपये देश में वापस लाकर उसे राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करने के लिए दिल्ली के रामलीला मैदान में किया गया आमरण अनशन  अन्ना हजारे व बाबा रामदेव दोनों ने ही राष्ट्रीय हित के मुद्दे को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर अपना आन्दोलन किया जिसे मीडिया ने भी अपने - अपने तरीके से प्रस्तुत किया . एक तरफ जहां हिंदी मीडिया ने ख़बरों को विस्तृत रूप में दिखाया वही अंग्रेजी मीडिया ने ख़बरों पर प्रश्न चिन्ह लगाते हुए मामलों को आशंकाओं के घेरे में ला कर खड़ा कर दिया और जनता को जवाबदेह बना दिया . लेकिन अगर बात अंग्रेजी और हिंदी मीडिया की करे तो यह बात तटस्थ है कि आरम्भ से ही दोनों की खबरों के प्रस्तुति में असमानता रही है .
यह बात तो सबके संज्ञान में भी है कि हिंदी मीडिया का जन्म ही क्रांति के लिए हुआ था और स्वतंत्रता प्राप्ति में हिंदी मीडिया का बहुत बड़ा योगदान भी था इसके विपरीत अंग्रेजी मीडिया के जनक ब्रिटिश शासक थे ,जो कि सिर्फ 'फूट डालो और राज करो ' की नीति पर काम करते थे . इसका तात्पर्य यह है कि जिनकी नीति ही गलत थी उनके विचार कैसे अछे हो सकते थे और यही अंतर इन दोनों मीडिया के अन्दर अब भी समावेशित है .इसीलिए खबरों का स्वरुप भी दोनों मीडिया में अलग - अलग है .
अन्ना हजारे और बाबा रामदेव के मामले पर मीडिया के कवरेज की चर्चा करने से पूर्व यहां यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि आखिरकार मामला है क्या ?
अन्ना हजारे द्वारा जनलोकपाल विधेयक लाये जाने का समर्थन करना और उसको राष्ट्रीय स्तर पर लाना कितना सार्थक है यह जानना अतिआवश्यक है . अन्ना ने जिस लोकपाल विधेयक को लेकर आमरण अनशन किया और प्रधानमन्त्री और न्यायाधीशों को कटघरे में लाने की बात की है. उससे कितना प्रभाव पड़ेगा और कितनी स्पष्टता होगी यह कोई नही जानता क्योकि लोकपाल का दायित्व इतना मात्र है कि अगर प्रधानमन्त्री के ऊपर भी भ्रष्टाचार को लेकर कोई आरोप लगता है तो वह एक जांच कमेटी बना कर उसकी रिपोर्ट मुख्य न्यायाधीश को सौप देगा . हालांकि इसके लिए पूर्व से ही सीबीआई को यह अधिकार प्राप्त है लेकिन अन्ना को लगता है कि सीबीआई केंद्र सरकार के अधीनस्थ है , इसलिए जांच रिपोर्ट सत्य नहीं हो सकती लेकिन अन्ना इस बात से सहमत है कि लोकपाल विधेयक कमेटी में सरकार के भी ५ सदस्य शामिल हो सकते है . तो यहां स्पष्टता के लिए जगह कहा रह जाती है . सरकार अगर अन्ना की बात मान भी लेती है तो इस लोकपाल को अप्रत्यक्ष रूप से सरकार का रिमोट ही चलाएगा . 
अब अगर बाबा रामदेव के आन्दोलन की चर्चा करे तो बाबा ने जो मुद्दा उठाया है कि ४ सौ लाख करोड़ रुपये का काला धन जो विदेशी बैंकों में जमा है वो देश में वापस ला कर उसे राष्ट्रीय संपत्ति सरकार द्वारा घोषित की जाए. विदेशी बैंकों में काले धन के रूप में देश की इतनी बड़ी संपत्ति अगर जमा है तो स्वाभाविक रूप से वो आम आदमी द्वारा जमा करायी गयी नहीं होगी . इसमें देश के बड़े - बड़े पूंजीपति और नेता मुख्य रूप से शामिल होंगे और जब देश इन्हीं के हाथ की कठपुतली है तो कौन चाहेगा की बाबा रामदेव का आन्दोलन सफल हो . बाबा रामदेव का आन्दोलन देश के आम आदमी का आन्दोलन है ,देश के आम आदमी की आवाज़ है इसके विपरीत अन्ना का आन्दोलन आम आदमी के हित से जुड़ा आन्दोलन न होकर सिर्फ शासन प्रणाली में थोड़े सुधार से जुड़ा मुद्दा है ,जबकि लोकपाल विधेयक भी पूर्ण रूप से व्यवस्था परिवर्तन नहीं कर सकेगा .
अब अगर इन दोनों राष्ट्रीय स्तर की खबरों पर मीडिया कवरेज की बात करे तो महाराष्ट्र से चलकर दिल्ली आए अन्ना हजारे जन लोकपाल बिल को लाने के लिए अनशन पर जब बैठे तो इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने इसे २४ घंटों का कवरेज दिया  वहीं प्रिंटमीडिया भी उनसे संबंधित खबरों से सराबोर दिखायीदी  इसका कारण वहां राजनीति  फिल्मी जगत के चर्चित चेहरों का दिखाई देना था  क्रिकेट वर्ल्ड कप की खबरें परोसने के बाद सभी चैनलों और समाचार पत्रों में अन्ना हजारे सिलेब्रिटी के रूप में उभर कर आएं  चार दिनों तक राजनीति के बहुचर्चित चेहरों की बाइट्स मीडिया में बनी रही और उसके बाद अन्ना के आंदोलन को एक सफल आंदोलन के रूप में परोसा गया चाहे उसका अंजाम जो भी रहा हो । इससे थोड़ा हट के शुरुवाती दौर में  बाबा रामदेव के आन्दोलन पर मीडिया की कवरेज मात्र इतनी थी कि बाबा रामदेव दिल्ली के रामलीला मैदान पर आमरण अनशन के लिए बैठ गये है और उनके समर्थको का ताता लगा जा रहा है . इलेक्ट्रोनिक मीडिया में खबरे दिखायी जा रही थी कि लाखों समर्थक उनके दिल्ली के रामलीला मैदान पहुंच रहें हैं . अर्थात मामले को इस प्रकार से परोसा जा रहा था कि अगर इसे यही समाप्त नहीं  किया गया तो दिल्ली तहस - नहस हो जायेगी . जबकि इलेक्ट्रोनिक मीडिया द्वारा ही ४-५ जून को हुई  पुलिसियां कारवाई के समय यह भी दिखाया गया कि बाबा रामदेव ने उस समय भी अपने समर्थकों को यह कहा कि - 'पुलिस चाहे आप पर कितना भी जुल्म करे मेरे कोई भाई उनका जवाब हिंसक रूप में नहीं देंगे'  और इसी घटनाक्रम के दौरान जब बाबा रामदेव ६ घंटों के लिए गायब हो जाते हैं तो यही इलेक्ट्रोनिक मीडिया के कुछ बड़े चैनलों पर खबर को कुछ इस प्रकार से दिखाया जाता है कि - कहीं इस कारवाई में बाबा कि मृत्य तो नहीं हो गयी , कहीं सरकार बाबा को किसी गुप्त जगह छुपा तो नही दी . लेकिन चंद घंटों में जब यह पता चलता है कि बाबा रामदेव हरिद्वार स्थित पतांजलि योगपीठ पहुंच गये हैं तो सारी मीडिया उनके कवरेज के लिए हरिद्वार पहुंच गयी .पतांजलि योगपीठ के आस पास मीडिया का जमावड़ा लग गया . इसके बाद एक बार फिर चैनलों  पर रामदेव जी छा गये .
 जून की सुबह जिस आईबीएन७  इंडिया टीवी पर खबरें इस रूप में चल रहीं थी कि मानों पुलिस और सरकार की मिली भगत से बाबा रामदेव पर बर्बरता पूर्वक कहर ढाया गया हो उसी चैंनल पर कुछ ही घंटों में दिखाये जाने वाले खबर में इतना परिवर्तन आ जाता है कि अब उस चैनल पर खबर कुछ इस प्रकार से प्रस्तुत किया जाता है कि बाबा रामदेव को ही आशंकाओं के घेरे में लाकर खड़ा कर दिया जाता है.अब समाचार कुछ इस प्रकार से - जब बाबा के साथ इतना बड़ा जनसमर्थन था तो बाबा भागे क्यों ? , औरतों के वस्त्र में बाबा भागे , बाबा रामदेव के पास कितने की संपत्ति? आदि . 
पिछले दिनों दैनिक भास्कर की वेबसाइट पर एक खबर थीबाबा रामदेव ने खुद को बताया भगवान राम और महात्मागांधी.हालांकि खबर में रामदेव के हवाले से लिखा गया था कि - मैं तो वही कर रहा हूं जो महात्मा गांधी और भगवान राम ने किया था। जब भगवान राम को नहीं बख्शा गया तो वे मुझे कैसे छोड़ सकते हैं.’इस बयान को यहां ऐसे परोसा गया जिससे हर पाठक को यह लगा कि अब बाबा रामदेव ने स्वयं को महात्मा गांधी और भगवान राम से भी महान बताना शुरु कर दिया.
 यह वही मीडिया है जो कल तक बाबा को मिल रहे भारी जनसमर्थन के पश्चात उनके  आन्दोलन की सराहना कर रही थी और अचानक सरकार के आदेश पर पुलिस द्वारा किये गए लाठीचार्ज के बाद से पूरी घटना का रुख ही मोड़ते दिखाई देने लगी . अब बाबा रामदेव के आन्दोलन की सराहना नहीं बल्कि बाबा के बैंक बैलेंस और उनके नारी वस्त्र धारण कर रामलीला मैदान से भाग जाने की ख़बरें  चैनलों पर प्रस्तुत किया जा रहा था फिर भी यहां प्रिंट मीडिया ने अपनी कर्त्तव्य निष्ठा को बचाए रखते हुए  ख़बरों को उतना तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत नहीं किया जितना कि इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने दीखाया . 
यह तो था अब तक का मीडिया द्वारा इन राष्ट्रीय स्तर के बड़े ख़बरों पर दृष्टिकोण अब इसी जगह मां गंगा को बचाने के लिए खनन माफियाओं के खिलाफ 68 दिनों से अनशनरत हरिद्वार के युवा स्वामी निगमानंद सरस्वती और १०७० दिनों से वाराणसी में आमरण अनशन पर बैठे काशी महाशमशान नाथ के पीठाधिश्स्वर बाबा नागनाथ की चर्चा करें तो यहां मीडिया का रुख कुछ इस प्रकार से था कि निगमानंद जी की मृत्यु के पश्चात उन्हें चैनलों की कवरेज मिली और बाबा नागनाथ को  जिला चिकित्सालय में भर्ती कराये जाने के पश्चात . आखिर ऐसा क्यों है कि इन्हें इन मीडिया चैनलों ने भी अपने चैनल पर जगह देना उचित नहीं समझा ? . इसके पीछे एक कारण स्पष्ट होता है कि अब मीडिया भी मुद्दों को राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचने का इन्तजार करती है .ताकि टीआरपी आसानी से हासिल हो सके . 
सवाल चौथे स्तम्भ की भूमिका की करें तो यह स्तम्भ आज आम आदमी के लिए न्याय की गुहार का अंतिम दरवाजा है .जब आम आदमी हर तरफ से हार मान जाता है तो उसके पास सिर्फ एक ही विकल्प बचता है और वो है 'मीडिया ' . लेकिन अगर घटनाओं पर नजर डाले तो क्या अब ऐसी स्थिति स्पष्ट होती है कि आम आदमी को यहां से भी उचित समर्थन प्राप्त हो सकेगा . 



No comments:

Post a Comment