‘‘छोटे-छोटे मतभेदों के प्रति लगाव होता है और समाज में निहित आक्रामकता इन मुद्दों के छोटेपन की वजह से घटती जाती है।’’ यह विचार प्रसिद्ध वैज्ञानिक सिग्मंड फ्रायड का है। वर्तमान समय में भारतीय समाज में अयोध्या का मामला एक ऐसा ही मुद्दा बनकर रह गया है। गंगी-जमुनी तहजीब को भेदने वाला यह मुद्दा आज लोगों के अन्तःमन में घर कर चुका है। बावजूद इसके समाज में रह रहे कुछ लोग इस समस्या को जड़ से खत्म करने हेतु निरंतर प्रयासरत हैं और कुछ ऐसे लोग भी हैं जिन्हें वास्तव में ज्ञात ही नहीं है कि आखिर यह मुद्दा है क्या? उन लोगों के संज्ञान के लिए यहां अयोध्या मामला एक नजर में देने का प्रयास किया जा रहा है, जिससे भविष्य में इस बाबत कोई सोच निर्धारित करने से पूर्व व्यक्ति को हर घटना की जानकारी हो।
अयोध्या में घूमता समय का पहिया -
1528: अयोध्या में एक ऐसे स्थल पर मस्जिद का निर्माण किया गया जिसे हिन्दू राम का जन्म स्थान मानते हैं।
1853: सर्वप्रथम विवादित स्थल के पास साम्प्रदायिक दंगे हुए।
1859: अंग्रेज शासकों ने विवादित स्थल पर बाड़ लगा दी और परिसर के भीतरी हिस्से में मुसलमानों को तथा बाहरी हिस्से में हिन्दुओं को प्रार्थना करने की अनुमति प्रदान कर दी।
1949: श्रीराम की मूर्तियां विवादित ढांचे में पायी गई।
1984: विश्व हिन्दू परिषद के नेतृत्व में राम मंदिर के निर्माण के लिए एक समिति का गठन किया गया।
1986: जिला मजिस्ट्रेट ने हिन्दुओं को पूजा-अर्चन करने हेतु विवादित मस्जिद का ताला खोल देने का आदेश दिया। जिस पर मुसलमानों ने कोर्ट के इस आदेश का विरोध करते हुए ‘बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति’ का गठन किया।
6 दिसम्बर,1992: बाबरी मस्जिद को ढहा दिया गया। देश भर में साम्प्रदायिक दंगे भड़क उठे, जिसमें लगभग 2 हजार से अधिक लोग मारे गए।
24 नवम्बर,2009: लिब्रहान आयोग की रिर्पोट को संसद के दोनों सदनों के समक्ष प्रस्तुत किया गया। आयोग ने अटल बिहारी वाजपेयी और मीडिया को दोषी ठहराया व नरसिंह राव को क्लीन चिट दे दी।
20 मई, 2010: बाबरी विध्वंस के मामले में लालकृष्ण आडवाणी और कुछ अन्य नेताओं के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाने को लेकर दायर पुनरीक्षण याचिका हाईकोर्ट में खारिज हो गई।
26 जुलाई,2010: विवाद पर सुनवाई के बाद फैसले की तारीख सुनिश्चित की गई।
फैसले पर रोक लगाने और बातचीत से मसले का हल निकालने की मांग को लेकर सेवानिवृत्त नौकरशाह रमेश चन्द्र त्रिपाठी ने उच्च न्यायालय में अर्जी दाखिल की।
17 सितम्बर, 2010 : उच्च न्यायालय ने श्री रमेश चन्द्र त्रिपाठी की याचिका खारिज कर दी।
इसके पश्चात श्री त्रिपाठी ने इसी आशय की याचिका उच्चतम न्यायालय में दाखिल की।
28 सितम्बर,2010: उच्चतम न्यायालय ने भी श्री त्रिपाठी की याचिका खारिज कर दी। शीर्ष न्यायालय ने उच्च न्यायालय को मामले के फैसले पर लगी रोक हटा ली।
30 सितम्बर,2010ः उच्च न्यायालय ने अपना फैसला सुनाने का निर्णय दिया।
30 सितम्बर 2010, इस दिन का पूरे देश की जनता को बेसब्री से इंतजार था। आज ही के दिन अयोध्या मामले पर इलाहाबाद हाइकोर्ट के लखनऊ खंडपीठ द्वारा इस ऐतिहासिक मामले पर फैसला आने वाला था। पूरे देश की जनता सहित विश्व की भी आॅंखे इस फैसले पर टिकी थी। इस मामले में न्यायालय ने मुख्य रूप से चार बिन्दुओं को संज्ञान में लेकर अपना निर्णय सुनाया। पहला, विवादित धर्मस्थल पर मलिकाना हक किसका है। दूसरा, श्रीराम जन्मभूमि वहीं है या नहीं। तीसरा, क्या 1528 में मन्दिर तोड़कर बाबरी मस्जिद बनी थी और चौथा यदि ऐसा है तो यह इस्लाम की परंपराओं के खिलाफ है या नहीं। दोपहर के 3ः30 बजे थे, सभी लोग प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से टकटकी लगाए बैठे थे। तभी 4ः20 मिनट पर फैसला सुनाते हुए उच्च न्यायालय की तीन सदस्यी विशेष पीठ के न्यायाधीष न्यायमूर्ति एस.यू.खान, न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और न्यायमूर्ति धर्मवीर शर्मा ने कहा कि जमीन का तीन हिस्सों में बंटवारा किया जाये। जहां रामलला विराजमान हैं,वह हिस्सा हिन्दुओं को तथा राम चबूतरा व सीता रसोई सहित एक तिहाई निर्मोही अखाड़े को और शेष तीसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया जाये। इस फैसले से जहां एक ओर हिन्दुओं में हर्ष की लहर दौड़ उठी वहीं दूसरी ओर मुस्लिम समुदाय में निराशा दिखाई पड़ी लेकिन इन सब के बावजूद दोनों समुदायों द्वारा न्यायालय के फैसले को सम्मान दिया गया। हालांकि इस फैसले के बाद भी दोनों समुदायों को यह अधिकार प्राप्त है कि वह इस फैसले के विरूद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर कर सकते हैं।
वर्षों से उत्तर प्रदेश की राजनीति का मुख्य केन्द्र बिन्दु बने अयोध्या मामले पर न्यायालय का निर्णय आने के बाद बुद्धजीवियों द्वारा व्यक्त किए गए विचार:-
‘‘इस ऐतिहासिक फैसले पर न्यायालय द्वारा फैसला आने के बाद कांगेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने कहा कि अदालत के फैसले से बाबरी मस्जिद विध्वंस का अपराध कमतर नहीं हुआ है और सभी दोषियों को सजा मिलनी चाहिए। इन्होंने यह भी कहा कि अयोध्या मुद्दे पर बातचीत के जरिए समाधान निकालने के लिए सही सोच वाले लोगों को आगे आना चाहिए और इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के मद्देनजर अगले तीन महीनों में समझौते के लिए काम करना चाहिए।
2 अक्टूबर,दैनिक भास्कर
‘‘ अयोध्या के विवादित स्थल के मलिकाना हक को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के 30 सितम्बर को आये फैसले की गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नए ढंग से व्याख्या करते हुए इसे गांधी के रामराज्य की परिकल्पना को साकार करने वाला बताया।’’
3 अक्टूबर,2010,दैनिक जागरण(रा.सं.)
‘‘ अयोध्या विवाद पर फैसला आ जाने के बाद शिया समुदाय के युवकों से जुड़े एक संगठन ‘शिया हुसैनी टाइगर्स’ ने राम मंदिर के निर्माण के लिए 15 लाख रूपये के मदद की पेशकश की है। इस संगठन के प्रमुख शमील शम्सी ने एक पत्रकार वार्ता में कहा- हम सुन्नी वक्फ बोर्ड से औपचारिक आग्रह करेंगे कि वह इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ के फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील न करें और इस विवाद को हमेशा के लिए खत्म कर दिया जाए।’’
3 अक्टूबर,2010,दैनिक जागरण
‘‘अयोध्या मामले पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला आने के बाद समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने एक बयान जारी कर कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में आस्था को कानून और सबूतों से ऊपर रखा है और देश का मुसलमान इस निर्णय से खुद को ठगा सा महसूस कर रहा है।’’
3 अक्टूबर,2010, जनसत्ता
‘‘अयोध्या मामले पर न्यायिक फैसले के बाद आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड के सदस्य और लखनऊ ईदगाह के नायब इमाम मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने कहा कि पूरे मुल्क में दोनों समुदायों के धार्मिक नेताओं, राजनेताओं व मीडिया ने इस संवेदनशील मुद्दे पर संयम का परिचय दिया है। यही हालात आगे भी रहने चाहिए।
3 अक्टूबर,2010,दैनिक जागरण
‘‘ अयोध्या मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को संतुलित करार देते हुए योगगुरू बाबा रामदेव ने कहा कि सभी पक्ष इस समस्या का समाधान चाहते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अगर किसी को कोई शंका है तो उच्चतम न्यायालय में जाने का मार्ग खुला है, लेकिन अगर इसका समाधान यहीं हो जाता है तो दुनिया के समक्ष एक नजीर पेश कर सकते हैं।’’
7 अक्टूबर 2010,दैनिक जागरण
‘‘प्रसिद्ध लेखक व स्तम्भकार कुलदीप नैयर ने अयोध्या मामले पर अदालती फैसले के बाद व्याप्त शांति व्यवस्था का पूरा श्रेय मुस्लिम समुदाय को देते हुए कहा कि आडवाणी और समग्र संघ परिवार को एक ओर से रथयात्रा के लिए और विवादित ढांचे के विध्वंस के लिए मुसलमानों से क्षमा मांगनी चाहिए।’’
13 अक्टूबर,2010,दैनिक जागरण
‘‘ अयोध्या मामले को आपसी बातचीत से निपटाने में लगे इस विवाद से जुड़े 90 वर्षीय मुद्ई हाशिम अंसारी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में ले जाने पर बल देने वालों को आड़े हाथ लेते हुए कहा है कि वे कतई मामले को सर्वोच्च अदालत में ले जाने के पक्ष में नहीं हैं।’’
15 अक्टूबर 2010, राष्ट्रीय सहारा
हाशिम अंसारी के ठीक विपरीत ‘‘इस न्यायिक फैसले के समय पर बाबरी मस्जिद के पक्षकार हाजी महबूब के साथ अयोध्या पहुंचे टाटशाह मस्जिद के इमाम मौलाना कुतुबुद्दीन कादरी समेत दर्जनों की संख्या में मुसलमानों ने एक स्वर से कहा कि मसला बातचीत व सुलह,समझौते से हल करने के बजाय सुप्रीम कोर्ट जाना ही देश व समाज के हित में होगा।
10 अक्टूबर 2010, दैनिक भास्कर
‘‘ अयोध्या मामले पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के पूर्व जो जामा मस्जिद के शाही इमाम अहमद शाह बुखारी बयान देते फिरते थे कि न्यायालय का फैसला सभी पक्षों को मान्य होगा, वही बुखारी फैसला आने के बाद एक उर्दु अखबार ‘दास्तान-ए-अवध’ के एक पत्रकार अब्दुल वाहिद चिष्ती द्वारा पूछे गए प्रश्न - जब कोर्ट ने फैसला दे दिया है कि विवादित जमींन राम का जन्म स्थान है, तो उसे हिंदुओं को क्यो नहीं सौप दिया जाता? ऐसी जमीन पर तो मस्जिद बनाने के लिए तो शरीयत में भी मनाही है, पर भड़क उठे और उसे अपशब्द कहते हुए व जान से मारने की धमकी देते हुए बाहर चले जाने तक को कह दिया।’’
15 अक्टूबर 2010, दैनिक भास्कर
‘‘ इस ऐतिहासिक फैसले पर उत्तर प्रदेश हिन्दू महासभा के प्रदेश अध्यक्ष कमलेश तिवारी ने कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा विवादित भूमि का एक तिहाई भाग सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिए जाने का हिन्दू महासभा विरोध करती है। इसके लिए वह अयोध्या आंदोलन की नई शुरूआत करेंगे। हिन्दू महासभा का दावा है कि विवादित भूमि का पूरा हिस्सा ‘रामलला’ का है। उन्होंने बताया कि इस सम्बंध में निर्मोही अखाड़ा के महंत भास्कर दास से बात करने का विचार था लेकिन उनके द्वारा चल रही समझौता वार्ता को देखकर उनसे बातचीत का इरादा स्थगित कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि यदि समझौते में दूसरे पक्ष की भूमि राम मंदिर निर्माण के लिए मिलती है तो उसका हम स्वागत करेंगे।’’
10 अक्टूबर 2010, दैनिक भास्कर
‘‘ इस फैसले के बाद जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि अयोध्या मुद्दे का समाधान हो सकता है, बशर्तें सुन्नी मुस्लिम संगठन अपना दावा छोड़ दे। उन्होंने आरोप लगाया कि यह संगठन मुद्दे पर कड़ा रूख अपना कर इसे जटिल बना रहे हैं और समझौते से दूर ले जा रहें हैं। स्वामी ने यह भी कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुन्नी वक्फ बोर्ड द्वारा दायर वाद संख्या 4 के मुद्दा संख्या 4 के मुद्दा संख्या 26 (बी) में कहा गया है कि चूंकि वाद दायर करने के लिए बाबरी मस्जिद का मुत्तवली ही अधिकृत पार्टी है, इसलिए सुन्नी वक्फ बोर्ड का विवाद में कोई अधिकार नहीं है। 10 अक्टूबर 2010, दैनिक जागरण
इस प्रकार से यहां स्पष्ट रूप से यह देखने को मिला कि सभ्य समाज के भले मानुष कहे जाने वाले देश के बुद्धिजीवीयों में ही न्यायालय के निर्णय को लेकर असहमति व्याप्त है। कहने का आशय यह है कि जहां एक ओर कुछ लोग इस मामले को उच्च न्यायालय के निर्णय के बाद से ही जड़ से समाप्त करने का प्रयास कर रहें हैं, वहीं कुछ लोग ऐसे भी है जो इस मुद्दे को और तुल पकड़ाने के लिए प्रयासरत हैं। यह वही लोग हैं जो इस मामले को भुना कर अपनी शाख बनाने में लगे हैं। हमारी संस्कृति में यह माना जाता है कि बुजुर्गों के मार्गदर्शन पर ही बच्चों का भविष्य निर्भर करता है, किन्तु जहां बुद्धिजीवियों में ही धर्म और जाति के नाम पर कटुता का भाव चरम पर है,वहां बच्चों को दिया गया मार्गदर्शन कैसा होगा? यह भली भाति समझा जा सकता है।
धर्म-संगम का देश कहे जाने वाले भारत के कर्णधारों ने अपनी राजनीति को सफेद जामा पहनाने के लिए धर्म के नाम पर अयोध्या मामले की ऐसी खाई खोद दी है, जिससे आने वाली न जाने कितनी पीढ़ीयों को धर्म के आधार पर भेदभाव होने का सामना करना पडे़गा। वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए यह कह पाना कि किसी सरकार, न्यायपालिका या व्यक्ति या संगठन द्वारा इस खाई को पाट पाना, अब असंभव हो गया है। जिस देश का लोहा ब्रिटिश सरकार तक ने माना और अंततः पतित पावन भारत भूमि को उन्हें छोड़कर जाना पड़ा, वही भारत आज धर्म, जाति और सम्प्रदाय के नाम पर बहुत तेजी से बंट रहा है। अब इस देश का भविष्य क्या होगा? यह तो आने वाला समय ही सुनिश्चित कर पायेगा।
बेहतरीन भाई साहब.. गजब की कलम चलाई है.. साथ ही तथ्यों को जिस प्रमुखता से समावेश किया है वह तो और भी खूबसूरत है। अच्छा लगा इसे पढ़कर और बहुत सी जानकारियां भी मिली..।
ReplyDeleteअन्त में एक बात का संशोधन चाहूंगा कि लेख के पहले पैराग्राफ में गंगी-जमुनी शब्द की जगह गंगा-जमुनी तहजीब को जगह दें। शेष बेहतर।
सुन्दर लेख को पढ़ाने के लिए सादर धन्यवाद ।