Saturday, December 18, 2010

रेगिस्तान बनेगा ऊर्जा का बड़ा सहारा





स्वच्छ ऊर्जा की तेजी से बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए वैज्ञानिक रात दिन एक किये हुए है . इस क्रम में विश्व  के सबसे बड़े रेगिस्तान सहारा को दुनिया का सबसे बड़ा सौर उत्पादक केंद्र बनाने पर काम किया जा रहा  है.
जापानी और अल्जीरिया यूनिवर्सिटी के इस संयुक्त उपक्रम सहारा सोलर ब्रीडर प्रोजेक्ट के तहत दुनिया में कायम अँधेरे को दूर करने का प्रयास किया जा रहा है . इस पूरी परियोजना के द्वारा साल २०५० में दुनिया के कुल ऊर्जा मांग के आधी मात्रा की पूर्ति की जा सकेगी . पूरी परियोजना पर पेश है एक नजर ------
सहारा सोलर ब्रीडर प्रोजेक्ट  
इस महत्वकांछी परियोजना के तहत सहारा रेगिस्तान में सिलिकॉन उत्पादन केंद्र लगाये जायेंगे. यहाँ रेगिस्तानी बालू में मौजूद सिलिका को निकालकर सिलिकॉन में तब्दील किया जायेगा .इस सिलिकॉन से सौर पैनल बनाये जायेंगे .यहाँ ही इन  पैनलो के उपयोग से सौर ऊर्जा केंद्र स्थापित होंगे .इस केंद्र से  तैयार बिजली का उपयोग दूसरे  पैनलो के निर्माण में किया जायेगा .फिर इन पैनलो से सौर ऊर्जा केंद्र स्थापित होगा .यह प्रक्रिया चलती रहेगी और एक दिन दुनिया का सबसे बड़ा रेगिस्तान दुनिया का सबसे बड़ा सौर ऊर्जा उत्पादन केंद्र भी बन जाएगा .जिससे दुनिया की ऊर्जा की जरूरतों को पूरा किया जा सकेगा .
ऊर्जा उत्पादन लक्ष्य  
इस योजना योजना के तहत साल २०११ में १०० किलोवाट बिजली पैदा करने के लिए सौर पैनल लगाने का शुरूआती लक्ष्य है .२०५० तक इस योजना से सालाना १०० गीगावाट बिजली पैदा की जा सकेगी .
योजना पर खर्च
विशेषज्ञों के अनुसार इस पूरी योजना पर शोध के मद में सालाना १० करोड़ येन(२० लाख डालर) के हिसाब से पांच सालों तक खर्च होगा

वितरण
इससे बिजली की आपूर्ति एक ग्लोबल सुपरकंडक्टिंग सुपर ग्रीड से होगी .शोध टीम के प्रमुख हिदियोमी कोइनुमा के अनुसार इससे १०० गीगावाट की बिजली ५०० किमी. तक विस्तरित की जा सकती है.
मुफीद मरुस्थल
 रेत :
इसमें सिलिकॉन की प्रचुरता से सौर पेनल निर्माण में आसानी
सूर्य  का प्रकाश :
सूरज की रौशनी सहज उपलब्ध
दुश्वारिया
रेत से सिलिकॉन तैयार  करके सौर पेनल निर्माण की कोई  तकनीकी मौजूद नहीं
. रेगिस्तानी तूफ़ान बड़ी चुनौती
. इस ऊर्जा केंद्र में तैयार बिजली के दुनिया के अलग - अलग हिस्सों में पहुचाने के लिए ऐसी केवल की जरुरत होगी जिन्हें तरल नाइट्रोजन से ठण्ड किया गया हो .इन केबलो के तापक्रम को स्थिर रखने के लिए इनको भूमिगत ले जाना मुस्किल काम है .
इस प्रोजेक्ट ने रेगिस्तानी जमीनों के लिए संभावनाए के द्वार खोल दिए है .
रेगिस्तान : धरती का वह हिस्सा जहाँ सालाना २५० मिमी से कम बारिश होती है .
 
 
 
 
 
 
 

       


  

2 comments:

  1. bhai ye sab kya chaspa kar rakha hai... kuchh aisa likho ki lage aapne likha hai...

    kewal cut paste me aapke lekhni ki khusboo nahi aa rahi...

    sorry par aapke lekh ko padhne ke baad chaspa ki gayi faltu chije pasand nahi aati...

    kripya apne pathko ki utsukta par dhyaan de aur unke liye swalikhit wastu hii paddhne ke liye de....

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