Friday, April 1, 2011

क्रिकेट के मैदान पर राजनीति का खेल


३० मार्च २०११ का   दिन भारतीय क्रिकेट की दुनिया में एक ऐतिहासिक दिन बन गया   है .भारतीय क्रिकेट टीम के जीत की हुंकार उसके टास जितने के समय से ही भारतवासियों को सुनायी देने लगी थी .यह खेल हर भारतवासी के लिए उतना  ही महत्वपूर्ण था  ,जितना  की पकिस्तान सेखेल देखने आये प्रधानमन्त्री गिलानी के लिए था .यह मैच केवल एक खेल ही नहीं था बल्कि भारत पाक के बिगड़े  सम्बन्धों को सुधारने की एक महत्वपूर्ण कड़ी भी थी ,जिसको खेल के  मैदान  पर डटे रहे भारतीय खिलाड़ियों ने भी पूरी ईमानदारी से निभाया,लेकिन राजनीति की रोटी इस खेल पर भी सिकते हुए दिखाई दे गयी .भारतीय खिलाड़ियों के चौके -छक्के के बीच कूटनीति के मैदान पर दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों की वार्तालाप में भी जमकर रन बटोरने का प्रयास किया गया , आपसी सदभावना इस प्रकार की थी कि मीडिया को भी इस वार्तालाप पर कोई टिपण्णी करने कि पूर्व में ही मनाही थी . २६ नवम्बर २००८ मुंबई में हुए आतंकवादी हमले के बाद पहली बार भारत में हुए दोनों प्रधानमंत्रियों की यह मुलाक़ात लगभग डेढ़ घंटे तक चली . हालांकि इस मुलाकात के दौरान भरोसा बहाली का नया दौर शुरु करने की रजामंदी दोनों तरफ दिखाई दी . 
पंजाब की धरती पर पंजाबी मूल के दोनों नेताओं द्वारा आपसी तालमेल इस कदर देखने को मिला कि दोनों ने शायद ही एक -दूसरे से विपरीत रुख किया हो .ऐसे में यह आशंका जताया जाना कि क्रिकेट में कम दिलचस्पी रखने वाले मनमोहन सिंह के लिए भारतीय क्रिकेटरों के खेल प्रदर्शन से अधिक जोर कूटनीतिक स्कोर बढ़ाने पर रहा होगा ,गलत नहीं है . क्रिकेट के मैदान से लेकर दावत की मेज तक चर्चाओं का बाजार गर्म रहा .सप्रंग अध्यक्ष सोनिया गाँधी ,कृषि मंत्री शरद पवार ,पंजाब के राज्यपाल शिवराज पाटिल सहित कुल ३० लोग इस दावत में शामिल हुए थे .
अथिति देवो भवः को वास्तव में चरितार्थ अगर किसी देश ने किया है ,तो वो भारत है ,इस चीज को केंद्र सरकार ने अपने इस राजनीतिक खेल में दिखाने का पूरा प्रयास किया है ,लेकिन क्या यह वास्तव में सफल सिद्ध हो सकेगा ? ऐसा इसलिए क्योकि इसके पूर्व में भी जब  किसी समझौते की बात हुई है ,तो पहल भारत ने ही की है .इसके परिणामस्वरुप हमें जो मिला वह सबके संज्ञान में है . माना जा रहा है कि इस मुलाकात के बाद जहां दोनों देशों के मध्य प्रेम और सौहार्द कि भावना जहां बढ़ेगी वहीँ  दूसरी ओर दोनों देशों कि सरकार द्वारा साझा व्यापार कमीशन , सीमापार आवाजाही बढ़ाने एवम व्यापार बढ़ाने के लिए रियायतें भी दी जा सकती हैं .इन सबके पीछे सोचने लायक विषय यह है कि जहां एक ओर गिलानी के बेटे कि विदेश में सर्जरी चल रही है ,वहीं दूसरी ओर वे वहां उपस्थित न होकर भारत में मैच देख रहे थे . एक बहुत पुरानी कहावत है कि …’दूध का जला मट्ठा भी फूंक कर पीता है कहीं ऐसा न हो कि फिर किसी कारगिलकी शुरुवात होने वाली हो और हम अथिति देवो भवः के सुर ही अलापते रहें .क्योकि ऐसा प्रमाणित भी है कि ..सांप को कितना भी दूध पिलाया जाये कभी न कभी वो डसेगा ही .ऐसा इसलिए क्योकि जब युद्ध होता है तो एक भी सत्ताधारी उसमें शहीद नहीं होता ,उसमें शहीद होते हैं माँ भारती के वीर सपूत इस देश के जवान सैनिक और उनकी शहादत का बोझ आजीवन उठाता है उनका परिवार . इसलिए सत्ता पर आसीन नेताओं को इसे ध्यान में रखते हुए ही कदम उठाना  चाहिए और आपसी सौहार्द और भाईचारे के बीच कारगिल में शहीद हुए जवानों को भी स्मरण में रखना चाहिए .

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