Tuesday, April 5, 2011

वर्ल्ड कप का खुमार ..राजनीति का प्रचार

 २ अप्रैल २०११ का दिन क्रिकेट के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जायेगा .कपिल देव की कप्तानी में १९८३ में सर्वप्रथम भारतीय क्रिकेट टीम नेक्रिकेट विश्व कप जीत कर विश्व में भारत का नाम रोशन किया था .उसके बाद २००३ में भारतीय क्रिकेट टीम के तात्कालिक  कप्तान सौरभ गांगुली ने विश्व कप के फ़ाइनल  तक अपनी टीम को पहुंचाया लेकिन जीत दर्ज करा पाने में असफल रहें .लेकिन २८ वर्षों के अथक प्रयास के बाद भारतीय क्रिकेट टीम के शेरों ने यह साबित कर दिया की देर जरुर है मगर अंधेर नहीं ..
भारतीय क्रिकेट टीम के  वर्तमान कप्तान महेंद्र सिंह धोनी  की  कप्तानी में मुंबई के मैदान में भारतीय क्रिकेट टीम ने २ अप्रैल २०११ को श्रीलंकाई क्रिकेटरों को धुल चटा कर विश्व कप के फ़ाइनल  में अपनी जीत दर्ज कराई . इस जीत का श्रेय इकलौते  धोनी को ही नहीं बल्कि उन सभी भारतीय खिलाड़ियों को जाता है ,जिन्होंने इस विश्व कप में सहभागिता निभायी .उनकी इस जीत में उन सभी भारतीयों का भी पूरा योगदान रहा जिन्होंने इस जीत के लिए सच्चे दिल से प्रार्थनाएं की थी . भारतीय क्रिकेट टीम की इस ऐतिहासिक  जीत के साथ ही पूरे देश में हर्ष  की लहर दौड़ पड़ी ,लेकिन कुछ राजनीतिक पार्टियों ने  इस अवसर पर  भी अपनी राजनीतिक रोटी सेकने का पूरा प्रयास किया .जहाँ एक ओर देश का युवा वास्तव में इस खुशी को अपने – अपने तरीके से मनाने में लगा था,वहीँ सत्ता में बैठे कुछ लोग सड़कों पर इस प्रकार से अपनी पार्टी के झंडे हाथ में लिए घूम रहें थे कि मानों उन्हें इससे सस्ता प्रचार का माध्यम नहीं मिल सकता .
देश की राजनीति में स्वयं को युवाओं का प्रेरणा मानने वाले राहुल गाँधी की बात करें तो वो खेल के मैदान में बिना किसी सुरक्षा के दर्शकों के बीच बैठ कर अपनी राजनीतिक  साख को इस प्रकार से मजबूत करने का प्रयास कर रहें थे कि मानों जैसे लोगों को दिखाना चाहते हों कि वह एक सच्चे राष्ट्रभक्त हैं और उन्हें अपने देश में किसी सुरक्षा की  आवश्यकता नहीं है,वह कहीं भी स्वछन्द रूप से विचरण कर सकते हैं .अगर वास्तव में यह सच है तो यह प्रक्रिया सिर्फ खेल के मैदान तक ही क्यों सीमित  है ?इस प्रकार से खेल का आनंद लेना और ख़ुशी  का इजहार करना क्या वास्तव में राष्ट्रवादी विचारधारा का परिचायक होना है या गिरती राजनीतिक साख को बचाए रखने के लिए सस्ते प्रचार का माध्यम है .
 हालांकि  वास्तव में यह जीत हर भारतवासी के लिए गर्व की बात रही  है लेकिन भारतीय टीम के वर्ल्ड कप जीतने के बाद युवाओं ने जिस तरह अपनी ख़ुशी का इजहार किया, उसका किसी भी शब्द में वर्णन नहीं किया जा सकता . क्योकि यह किसी राजनीतिक पार्टी द्वारा किसी रैली में बुलाये गए राजनीतिज्ञों द्वारा जुटाई गयी भीड़ नहीं थी ,बल्कि सच्चे दिल से क्रिकेट वर्ल्ड कप भारत जीते, इसके लिए दिन – रात प्रार्थना करने वालों की स्वयं से ख़ुशी मनाने का जोश था . लेकिन कुछ राजनीतिज्ञ यहां भी अपना राजनीतिक हथकंडा अपनाने से बाज नहीं आये . वर्ल्ड कप की जीत में भी राजनीतिक पार्टियों के झंडे बड़े अच्छे ढंग से लहरा रहे थे .
 सोनिया जी भी ख़ुशी का इज़हार करने के लिए कांग्रेस का झंडा हाथ में लिए गाड़ी  लेकर दिल्ली की सड़कों पर उतर आई, जो जीत की ख़ुशी कम और कांग्रेस के प्रचार करने का ढंग अधिक दर्शा रहा था . इसे वास्तव में जीत की ख़ुशी का इजहार कहें या आगामी आने वाले चुनावों की दृष्टी से किया जाने वाला प्रचार. आखिर क्यों रैलियों में जब यही नेता चलते हैं तो इन्हें भारी तादात में सुरक्षा कर्मियों व बुलेटप्रूफ गाड़ियों की आवश्यकता होती है और इसके विपरीत खेल के मैदान में बिना किसी सुरक्षा के रहना पसंद करते हैं ? यह प्रयास तो यही दर्शाता है कि शायद अभी भी यह राजनीतिज्ञ सोचते है कि इस देश की जनता इतनी भोली है कि उसे इन सस्ते प्रचार के माध्यम से बेवकूफ बनाया जा सकता है,लेकिन वह समय अब बीत चुका जब जनता इन नेताओं की राजनीतिक प्रोपेगंडों के जाल में फंस कर लाचार सी बनी रह जाती थी .इसका सीधा उदाहरण बिहार में हुआ सत्ता परिवर्तन रहा है .
इसलिए इन राजनीतिज्ञों को अपनी साख बचानी है, तो वास्तव में देश के विकास की ओर ध्यान दे , देश के सामने सबसे बड़ा खतरा बन रहे जम्मू-कश्मीर की ओर ध्यान दे और अपनी विदेश नीतियों की तरफ ध्यान दे . इस प्रकार से किये जाने वाले सस्ते प्रचार के माध्यम से अब कोई भी राजनीतिक पार्टी अपने साख को नही बचा सकेगी क्योकि देश की जनता अब जागरूक हों चुकी है. वह किसी राजनीतिक पार्टी को सत्ता पर बिठाना जानती है तो गिराना भी.  इसके लिए आवश्यक है कि इन राजनीतिक पार्टियों को ऐसे सस्ते प्रचारों के माध्यम को छोड़कर वास्तव में देश के विकास के लिए कुछ कार्य करने चाहिए.

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