Tuesday, April 5, 2011

जन लोकपाल बिल आखिर क्यों ?.....


भारत  में लोकपाल की स्थापना सम्बन्धी  बिल की अवधारणा सर्व प्रथम १९६६ में सामने आई । इसके बाद से ही यह बिल लोकसभा में आठ बार पेश किया जा चुका है किन्तु अभी  तक यह पारित नहीं हो सका । इसके पहले  पूर्व प्रधानमंत्री इंद्रकुमार गुजराल के कार्यकाल में एक बार १९९६  में और अटलबिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में दो बार १९९८  और २००१  में इसे लोकसभा में लाया गया था । वर्ष २००४  में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने वादा किया था कि जल्द ही लोकपाल बिल संसद में पेश किया जाएगा लेकिन  अब तक सरकार अपने वादे को पूरा नहीं कर सकी  
वास्तव में जन लोकपाल बिल आखिर है क्या जिसके लिए ७२ वर्षीय गाँधीवादी नेता अन्ना हजारे को आमरण अनशन पर बैठना पड़ा . अन्ना हजारे से पहले भी इस वर्ष ३० जनवरी को देश के ६० शहरों में लाखों लोग सड़कों पर इस बिल के लिए ही उतरे थे . आम आदमी जो इससे अनभिज्ञ है और वो इस आन्दोलन में  अपना समर्थन नहीं दे पा रहा है. ऐसे लोगों की संज्ञान के लिए ..भ्रष्टाचार से निपटने का सबसे कारगर रास्ता हो सकता है जन लोकपाल बिल.

सरकार द्वारा तैयार किये गए लोकपाल बिल की चर्चा करें तो इसमें तीन सदस्यीय  लोकपाल होंगे जिसमें सभी रिटायर्ड न्यायाधीश होंगे .चयन समिति में उपराष्ट्रपति ,प्रधानमन्त्री ,दोनों सदनों के नेता पक्ष सहित नेता प्रतिपक्ष और कानून मंत्री व गृहमंत्री शामिल होंगे .मंत्रियों ,सांसदों के विरुद्ध जांच व मुकदमें के लिए लोकसभा व राज्यसभा अध्यक्ष की अनुमति आवश्यक होगी तथा प्रधानमन्त्री  के विरुद्ध जांच की अनुमति नहीं होगी .इस बिल में लोकायुक्त केवल सलाहकार की भूमिका में होंगे अर्थात एफआईआर  से लेकर मुकदमा चलने की प्रक्रिया पर  तथा न्यायाधीशों के विरुद्ध  कारवाई पर  विधेयक मौन है .

सरकार द्वारा तैयार किये गए इस प्रकार के विधेयक से सबसे बड़ी समस्या यह रहेगी  कि  जब चयन समिति में ही भ्रष्टाचार के आरोपियों की सहभागिता होगी तो निसंदेह ईमानदार लोगों के चयन में आशंकाए व्याप्त रहेंगी .न्यायाधीशों की सेवा समाप्ति के पश्चात भी सरकार से उपकृत होने की आशा रहने से निष्पक्षता प्रभावित होगी.इसके साथ ही केजी बालाकृष्णन जैसे न्यायाधीशों  के विरुद्ध कार्रवाई संभव नहीं हो सकेगी और तो और जेएमएम सांसद खरीद कांड,बोफोर्स ,२ जी स्पक्ट्रम जैसे मामलों में भी प्रधानमन्त्री की भूमिका की जांच नही हो सकेगी . देश पहले ही २ जी स्पक्ट्रम और राष्ट्रमंडल खेलों में हुए  भ्रष्टाचार में सरकार की संलिप्तता से त्रस्त है ,ऐसे में सरकार द्वारा बनाये गए ऐसे  विधेयक से देश का अस्तित्व गुमनामी के अंधेरों में चला जायेगा .

वास्तव में जिस बिल की आवश्यकता है वह इस प्रकार से है -
• अध्यक्ष समेत दस सदस्यों वाली एक लोकपाल संस्था होनी चाहिए.
भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करने वाली सीबीआइ के हिस्से को इस लोकपाल में शामिल कर दिया जाना चाहिए.
सीवीसी और विभिन्न विभागों में कार्यरत विजिलेंस विंग्स का लोकपाल में विलय कर दिया जाना चाहिए.
लोकपाल सरकार से एकदम स्वतंत्र होगा.
नौकरशाह, राजनेता और जजों पर इनका अधिकार क्षेत्र होगा.
बगैर किसी एजेंसी की अनुमति के ही कोई जांच शुरू करने का इसे अधिकार होगा.
जनता को प्रमुख रूप से सरकारी कार्यालयों में रिश्वत मांगने की समस्या से गुजरना पड़ता है। लोकपाल एक.
अपीलीय प्राधिकरण और निरीक्षक निकाय के तौर पर केंद्र सरकार के सभी कार्यालयों में कार्रवाई कर सकेगा.
विसलब्लोअर को संरक्षण प्रदान करेगा.
लोकपाल के सदस्यों और अध्यक्ष का चुनाव पारदर्शी तरीके से किया जाना चाहिए.
लोकपाल के किसी अधिकारी के खिलाफ यदि कोई शिकायत होती है तो उसकी जांच पारदर्शी तरीके से एक महीने की भीतर होनी चाहिए.


अन्ना हजारे ने आमरण अनशन पर बैठ अपने वक्तव्य के दौरान एक बात कही कि ...सरकार किसी अन्ना से नहीं बल्कि गिरने से डरती है. शायद अब वो समय आ गया है कि इन सत्ताधारियों को लोकतंत्र का असली अर्थ समझाया जाये .लेकिन अकेले गांधी भी कुछ न कर सकते अगर उन्हें देश की जनता का साथ न मिला होता ,इसलिए अन्ना हजारे को भी देश की युवा शक्ति अपना समर्थन दे ताकि पूर्ण रूप से नहीं तो कम से कम कुछ हद तक इस भ्रष्टाचार रूपी रावन को देश से बाहर खदेड़ने में अपना सहयोग देकर , कुछ अच्छा कर सके .


1 comment:

  1. देशभक्ति को लेकर हजारे ने अपनी राजनितिक स्टंट-बाजी साफ़ दिखाई है. ऐसा करके शायद अन्ना हजारे यही कहना चाह रहे है की भारत में केवल वे ही देशभक्त है.अन्ना अरविन्द केजरिवालों और देशद्रोही स्वामियों के कब्ज़े में आ गए हैं

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